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कुछ अल्फ़ाज २: मोहब्बत


क्यों गुमसुम बैठी हो इतने दिनों से?
क्यों नहीं करती हो कोई कविता ?
सुनने को हूँ मैं बेक़रार,
तुम्हारे सुनहरे शब्दों की मधुर भाषा ।

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तुम्हें देख के मेरी आँखें हो जाती हैं बेक़रार,
तुम्हारी आँखों के गलियारों में खो जाने को बार-बार...

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जाते जाते खोल दो बंदिशें अपने जुल्फों की
करा दो मुझे अपनी रूह से रूबरू....

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ऐसी चमक का क्या फ़ायदा, जो दुसरों को चमक ना दे
ऐसी चमक से क्या खुशी, जिससे औरों को संतोष ना मिले
वो चमक चमक नहीं, जो औरों की दृष्टि छिन ले
असली चमक तो वो है, जो अंधे को भी रौशनी दिला दे।

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इतनी कड़ी रोज़ो के बाद भी
मुस्कुराहट में कमी नहीं है जिनके;
इतने कष्टों से नमाजें अदा करके भी,
सेवइयों की बहार बाँटने में लगे जो भाइ - बहनें
उन प्रताप के सागर अनमोल रत्नों को
इस नाचीज़ की तरफ से ईद मुबारक!!!

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चाह नहीं रखी इन नाचीज़ तोहफ़ों की
चाह नहीं रखी उन बेजान तारीफों की
चाह रखी तो बस दो पल प्यार की
चाह रखी तो बस वक्त में साथ की।

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हमारी सारी मेहनत का फल कुछ यूँ मिला
कि ऐसी मुस्कुराहट छा गई आपके चेहरे पर
जिसे देख कर मन हमारा
उन सारी दिक्कतों को याद करना ही भूल गया...

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चित्र स्रोत: इंटरनेट से ।

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