कुछ अल्फ़ाज १८: जीवन
मैं यहाँ साँपों से घिरा हूँ,
इसालिए उन हीरों की याद आती है।
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बस थोड़ा थक गया हूँ,
जिंदगी के कारनामे देख के।
पर हारना नहीं है,
मुझे बस चलते रहना है।
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घुटनों में दर्द है बहुत,
कदम बढ़ाने की हिम्मत नहीं है।
खुशकिस्मती से एक बैसाखी है,
उसके साथ जीवन बीताने की बात ही निराली है।
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पर एक दिन नया सूरज निकलेगा
नई उम्मीदें लेकर...
एक दिन वो इंद्रधनुष आएगा
सतरंगी मौके लेकर...
तब मैं पीछे मुड़ के देखूँगा
उन थोकरों की यादों को...
अपनी कहानी को समेट लूगाँ
आने वाली पीढ़ी को सुनाने को।
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दिल की बातें क्यों अक्सर होती हैं मिथ्या?
कभी तो कमबख्त सही बोले!
उसके दिखाए रास्ते क्यों दुःख देते हमेशा?
कभी तो अपनी नासमझी छोड़े!
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तुम्हारी हँसी बताती है,
छिपे हुए बातों की दास्तां।
आज मैं नहीं हूँ महरूम पहले की तरह,
सुनाओ अपनी बीती मुझे तुम ज़रा।
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किस खुशनसीब माशूका के झुमके हो ले आए,
ज़रा बताओ हम भी तो जाने,
कि किस अप्सरा ने तुम्हारे दिल में बसेरा लिया है,
ज़रा हम भी तो जाने...
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चित्र स्रोत: इंटरनेट से।
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