कुछ अल्फ़ाज १५
जिनकी जगह दिल में होती है,
उन्हें याद करने की जरूरत नहीं होती।
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यूँ ना दिल पर वार करो मेरे,
कहीं वो नाचीज़ रुक ना जाए।
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ऐसा ना कहो जान-ए-मन
कि हम तुम्हें याद नहीं करते।
सालों बाद भी अगर दिख जाओ कहीं,
हम मिलेंगे नाम तुम्हारा जपते हुए।
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हमें चाह नहीं चार पहिए पाने की,
हमें चाह है किसीके चार पहिए बनने की।
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आज लिखने चला एक शायरी
आधी अधुरी ही रह गई, मन में कुछ आया नहीं।
एक तस्वीर निकली मन की अल्मारी से,
जिसे देखकर मेरी अधुरी शायरी भी शर्मा गई...
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वो झल्ली है,
पर फिर भी प्यारी है।
वो नटखट है,
पर फिर भी दिल के करीब है।
वो बदमाशी की हदें पार कर देती है,
पर फिर भी उससे बेइंतहा मोहब्बत है।
वो बातों को हल्के में लेती है,
पर दोस्ती में गंभीर है।
वो बिगड़ती है बिलखती है,
पर यारी की परीक्षा में अव्वल ही आती है।
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चाहे सारा जहाँ तुझे छलने लगे,
मैं तुझे सिर्फ सच से रूबरू कराऊँगा...
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