कुछ अल्फ़ाज १४
हम तो दोस्त हैं दिलवाले यूँ ही रुस्ते नहीं,
जब तक दिल छलनी ना हो जाए साथ कभी छोड़ते नहीं।
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मैं चाहूँगा कि देश आगे बढ़े।
मैं चाहूँगा कि देश की उन्नति पर बात हो।
मैं चाहूँगा कि धर्म और जाति पर कोई भेदभाव ना हो।
मैं चाहूंगा कि सब इनसे अलग एक स्वतंत्र विचार रखें।
मैं चाहूँगा कि हम सब थोड़ा दूर तक सोचें।
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पलकें हमारी छोटी नहीं पड़ सकती हैं जनाब
इतने सालों से सिंचा जो है।
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ना मेरे दिल ने कभी चाहा
ना मेरे मन ने कभी सोचा
तुम्हें दुःख देने का मेरा कोई ईरादा नहीं।
फिर भी ऐ मैत्री मेरी, यदि दुःख हुआ है तुम्हें,
तो शिद्दत से हूँ माफी मांगता अभी...
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बातें कुछ ऐसी हैं जो शब्दों से बयां ना हो पाएँगी।
दिल में झाँक के देखो शायद सारे जवाब मिल जाएँगे।
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