कुछ अल्फ़ाज १३
अरे ! हम कवियों का दिल शब्दों के नाजुक धागों से जुड़ा होता है...
ज़रा धील दो और वह तितर-बीतर हो जाता है।
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सच्ची बात तो अपने ही कर सकते हैं,
झूठा दिलासा देना तो परायों का काम है...
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संजो के जो रखे थे छोटी-सी उम्र से
वो सारे सपने हमारे साकार हों।
अभी तो बस अंकुरित हुए हैं,
आओ अपने कर्मों से हम छायादार वृक्ष बनें...
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उलझा हूँ मैं जिंदगी के बेरहम जाल में
इसमें से निकलने तो दो
यूँ हीं ना मुझपर तुम आरोप लगाओ
पहले मुझे खुद को साबित करने तो दो।
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जिंदगी ने भले हमें कुछ ना दिया हो,
हर स्थिति में हँसने की हिदायत जरूर दे दी।
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यूँ ही नहीं सन्नाटा छाता है,
जब तक मातम का वक्त ना हो।
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जैसे धागा एक बार टूट जाए तो वापस जुड़ता नहीं,
नाते एक बार टूट जाएँ तो वापस बनते हैं...
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जैसे बाण एक बार छूट जाए कमान से तो वापस नहीं हैं आते,
शब्द एक बार निकल जाए ज़बान से तो आघात करके हीं हैं रहते।
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