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Azad Parinde


पिंजरे जैसे के अंदर बंद
एक परिंदा हूं मैं,
आज़ादी की तलाश में
यहां वहां भटकता हूं मैं।

पंख न खोल सकता मैं,
अपना दर्द न बोल सकता मैं।
देखता हूं आज़ाद होने का सपना:
शायद इस लड़ाई में कोइ साथ दे अपना

हर दिन खुद से पूछता हूं मैं,
“क्या मेरी यह चाह कभी मुक्कमल होगी”
जिसका मेरा दिल देता जवाब
"हां, बिल्कुल, और इसकी शुरुआत तुम  करोगे!"

एक दिन ज़रूर आज़ाद घूमेंगे हम
आज़ाद परिंदे कहलाएंगे हम
उदा दिया है सारे परिंदे आज
अब कोई नहीं पहनेगा गुलामी का ताज

Love
Nidzz❤️

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