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प्रोफेसर साहब की साहसिक "चार धाम यात्रा"

यह उन दिनों की बात है , जब प्रोफेसर साहब मेरठ शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में डायरेक्टर हुआ करते थे, और "डायरेक्टर सर "के नाम से जाने जाते थे, उस समय डायरेक्टर सर; का कॉलेज में बड़ा दबदबा था, वह कैंपस में बहुत अनुशासित रहते थे और अपने अधीनस्थ(under) काम करने वाले प्रवक्ताओं (lecturers) और स्टाफ को भी बहुत अनुशासित रखते थे, और विद्यार्थी भी उनसे बहुत डरते थे।

उनके इस प्रशासनिक कौशल (administrative skills)को देखते हुए, उन्हें "चीफ प्रॉक्टर" की भी जिम्मेदारी दे दी गई। उस जिम्मेदारी के तहत उन्हें हॉस्टल के बच्चों का निरीक्षण (inspection)करना पड़ता था,
क्योंकि घर कॉलेज के पास ही था तो डायरेक्टर सर, रात में एक बार हॉस्टल का चक्कर लगाने जाते थे!

प्रोफेसर सर बहुत बुद्धिमान थे सो उन्होंने हॉस्टल के निरीक्षण के लिए अपनी बॉडी गार्डों की एक टीम बनाई थी, वह अपनी टीम के साथ ही निरीक्षण करने जाते थे, क्योंकि प्रोफेसर साहब अगर किसी विद्यार्थी को इधर-उधर घूमते देख लिया करते थे तो उसकी ठुकाई करने से भी गुरेज नहीं करते थे।

एक दिन प्रोफेसर साहब घर पर रात का खाना खा कर सो रहे थे, कि हॉस्टल से फोन आया-" सर! यहां पर कुछ बच्चे शराब पी रहे हैं ।"

फिर क्या था प्रोफेसर साहब अपनी टीम के साथ वहां पहुंच गए, और उन विद्यार्थियों की जबरदस्त धुलाई कर दी, प्रोफेसर साहब की रात की नींद खराब हुई थी सो, उसी नींद में कुछ ज्यादा पिटाई हो गई। उन विद्यार्थियों को अपने अपने कमरे में पहुंचा कर, प्रोफेसर साहब घर आ गए।

सुबह जब कॉलेज पहुंचे ,तो सबसे पहले उन बच्चों की खबर लेने पहुंच गए। वहां पहुंचकर देखा कि बच्चों के हाथ-पैर में कुछ चोटें आई थी, सो प्रोफेसर साहब ने तुरंत चपरासी से दवा मंगा कर उन बच्चों को दिया और गर्म पानी करवा कर उन बच्चों के चोट की सिकाई करवाई। उस दिन के बाद से ,वह बच्चे प्रोफेसर सर के प्रिय हो गए और बच्चे भी प्रोफेसर की बड़ी इज्जत करने लगे।

उसी समय प्रोफेसर साहब के बचपन के एक मित्र घर पर आए हुए थे, उन्होंने अपने मित्र के इस व्यवहार को देखकर कहा-" प्रोफेसर तुम्हारे अंदर दोनों गुण हैं, पहले बच्चों को मारते हो और फिर दवा करवाते हो, तुमसे नाराज कौन रह सकता है?"

*******

एक दिन उनके अधीनस्थ काम करने वाले एक प्रवक्ता (Co-lecturer) जो हरिद्वार में रहता था बोला -"सर! आप हरिद्वार आइए हम लोग चार धाम यात्रा करने चलते हैं!"

प्रोफेसर साहब बोले-" कैसे जाएंगे?"

उसने कहा -"सर! ट्रैवेल्स की बहुत अच्छी-अच्छी बसें चलती हैं टैक्सी चलती हैं उसी से चलेंगे।"

प्रोफेसर साहब को यह मंजूर नहीं हुआ क्योंकि वह बस, टैक्सी, ट्रेन ,प्लेन से सफर करना पसंद नहीं करते थे। उनको अपनी सवारी से ही सफर करना पसंद था जिससे उनकी स्वतंत्रता में कोई बाधा ना बने। वह जहां चाहे ,जब मन चाहे, रुके या ना रुके।

उन्होंने उस प्रवक्ता( अंशु) से कहा-" मैंने पहाड़ों पर खूब ड्राइविंग की है, और मैं पहाड़ों पर किसी और की ड्राइविंग पर भरोसा नहीं कर सकता।मैं अपनी 'मारुति 800' से ही ,खुद ड्राइव कर के चलूंगा।"

अंशु ने प्रोफेसर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की-"सर! बहुत कठिन रास्ता होगा ,आप ड्राइव नहीं कर पायेंगे। वह भी छोटी गाड़ी है, उस रोड पर चलाना मुश्किल होगा।"

पर प्रोफेसर साहब ने तो ठान लिया था सो बोले-"नहीं मैं तो खुद ही ड्राइव करके ,अपनी ही गाड़ी से चलूंगा।मैं अपनी माताजी को बनारस से बुला लेता हूं। मैं ,माताजी, मैडम (wife) और तुम(Anshu) हम चार लोग गाड़ी में बड़ी आसानी से आ जाएंगे!"

बेचारा! अंशु भी समझ चुका था कि, अब सर को समझाना बहुत मुश्किल का काम है, उसने हामी भर दी।यह प्रोग्राम बनते ही माताजी को बनारस से बुला लिया गया। एक हफ्ते की छुट्टी का आवेदन (leave application)कर दिया गया और चार धाम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई।

गाड़ी को वर्कशॉप में ले जाकर पूरा निरीक्षण (checking)कराया गया, जो भी कमी थी दूर कर गाड़ी को पूरी तरह दुरुस्त (fit) करवाया गया।

रास्ते में खाने का क्या सामान जाएगा एक लिस्ट बनाई गई, खाने का सामान भरा गया ,गर्म कपड़े रखे गए और सुबह 4:00 बजे घर से निकलने की तैयारी ,रात में ही कर ली गई।

दूसरे दिन सुबह 4:00 बजे मेरठ से हरिद्वार के लिए 4 लोग गाड़ी में बैठ कर निकले। माताजी की तबीयत कुछ बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए गाड़ी को लगभग हर एक आधे घंटे पर रोकना पड़ता था।

वह गाड़ी से बाहर निकलती ,थोड़ा टहलती गैस निकालती और फिर गाड़ी में बैठती। उनके इस कार्यक्रम को देखकर, प्रोफेसर साहब बोले-"अरे ! ऐसे तो हम चार धाम की यात्रा कर चुके।"
पर क्या करते अब तो ऐसे ही चलना था।

इस प्रकार वो 12:00 बजे हरिद्वार पहुंचे। अंशु के घर बहुत आवा भगत (hospitality)हुआ। दोपहर का भोजन किया गया। शाम को "हरि की पौड़ी "का दर्शन हुआ। रात्रि को भी अंशु के घर भोजन कर विश्राम किया गया।

प्रोफेसर साहब ने सभी को, सुबह 4:00 बजे फिर से तैयार रहने का फरमान सुनाया।

दूसरे दिन सुबह सब लगभग 4-4:30 के बीच, हरिद्वार से जानकीचट्टी के लिए निकल पड़े। हरिद्वार से जानकीचट्टी की दूरी लगभग 250 किलोमीटर थी ।उसे ही लक्ष्य (target) मानकर प्रोफेसर साहब अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठे और बोले-" पूरे दिन ड्राइविंग होगी, शाम को 7:00 बजे के बाद, जहां भी होटल या धर्मशाला मिलेगा वहीं ठहर जाएंगे।"

हरिद्वार से बाहर निकल कर हाईवे पर आते ही ,प्रोफेसर साहब की मारुती हवा से बातें करने लगी, बड़ी-बड़ी एसयूवी (SUV) गाड़ियों को पीछे छोड़ती हुई ,उनकी मारुति सरपट आगे बढ़ने लगी।

प्रोफेसर साहब का एनर्जी बूस्टर (रजनीगंधा और तुलसी) उनके मुंह में था ,और उनकी आंखें सड़क पर।बाकी सभी गाड़ी में चुपचाप बैठ कर, उत्तराखंड की वादियों का आनंद ले रहे थे।

सुबह 4:00 बजे के निकले, अंशु और मैडम को भूख का एहसास हुआ, तो अंशु बोला-"सर! कहीं रुकते हैं चाय नाश्ता कर लेते हैं।"

पर सर को तो अपनी एनर्जी पूरी मिल रही थी, उनके मुख में जो एनर्जी बूस्टर था तो उन्होंने कहा-" अभी नहीं 10:00 बजे के आसपास रुकेंगे।"

ड्राइव करते हुए अपनी पत्नी से बोले-"मैडम! आपके पास तो खाने का सामान होगा ही ,उसे अंशु को दो।"

मैडम ने अंशु को कुछ बिस्किट और केले दिए, और खुद भी खाया क्योंकि ना तो सर को कुछ खाने की जरूरत थी,ना ही माता जी को, माताजी बाहर का कुछ नहीं खाती थी, गाड़ी में उन्हें तकलीफ थी ,सो वह केवल "हल्दीराम की भुजिया "और "लिम्का "ही पी रही थी, उससे उनकी गैस में आराम पड़ता था, माताजी की पूरी यात्रा लगभग इसी दो सामग्री में पूरी हुई थी।

गाड़ी 2 से 3 मिनट के लिए तभी रुकती थी, जब सर को अपना एनर्जी बूस्टर चेंज करना होता था। सो गाड़ी आधे घंटे बाद एक सुनसान जंगल के आसपास 2 मिनट के लिए रुकी और कहा गया-"आप लोग गाड़ी से बाहर निकलकर 2 मिनट में ,लघुशंका लगी हो तो, उससे निवृत्त (free) हो ले।इतनी देर में मैं कुछ खा लेता हूं। मैडम, केला देना।"

पानी पीकर,केला खाकर,अपनी एनर्जी बूस्टर लेकर प्रोफेसर साहब सबको आवाज लगाने लगे-"अरे! जल्दी करो।"
पर कोई भी उनकी आवाज नहीं सुन रहा था,सब प्रकृति का आनंद लेने में लगे थे।

दो बार आवाज लगाने पर ,किसी ने नहीं सुना तो प्रोफेसर साहब गाड़ी लेकर आगे बढ़ने लगे। गाड़ी आगे बढ़ती देख सभी गाड़ी की तरफ भागे।सब को आते देख, प्रोफेसर साहब ने गाड़ी रोक दी और कहने लगे-"कब से आवाज लगा रहा था, पर किसी को सुनाई नहीं दे रहा था, प्रकृति का आनंद लेने के चक्कर में लगभग 15 मिनट निकल गए थे। करीब 9-9:15 बजे होगे।"

मैडम ने गाड़ी में बैठते हुए अंशु जी से कहा-"अंशु जी! आपको अब तो नाश्ता नहीं मिलेगा, अब आप लंच का इंतजार करें, क्योंकि अब सर ! ड्राइविंग सीट पर बैठेंगे तो ,1:00 से 2:00 बजे के पहले नहीं रुकने वाले हैं। आप यह मठरी खा ले और इसी को अपना नाश्ता समझे।"

और हुआ भी वही 2:00 बज रहे थे,गाड़ी कहीं भी नहीं रुकी।तब पीछे से प्रोफेसर साहब की पत्नी बोली-"अरे !!! लंच होगा कि नहीं, अब सीधे डिनर ही कराएंगे?"

सर बोले-" नहीं भाई आगे रोकता हूं, कोई अच्छी जगह तो मिले। अंशु! कोई अच्छा रेस्टोरेंट दिखे तो बताना!"

थोड़ी देर बाद एक रेस्टोरेंट दिखा, तब तक 3:00 बज चुके थे, उन लोगों का लंच लगभग 3:00 बजे हुआ।

अब तक ,वह लगभग 210 किलोमीटर का सफर तय कर चुके थे, "बारकोट" से जैसे ही ,"हनुमान चट्टी "की ओर बढ़े, बहुत ही खराब रोड मिली। सड़क पर बड़े-बड़े पत्थर, पानी, गड्ढे, यह सब देखकर वह सभी घबरा गए। अब इन सब को इस छोटी सी गाड़ी से कैसे पार करेंगे।

प्रोफेसर साहब ने गाड़ी रोक दी, और विचार करने लगे कि यहां से कैसे निकला जाये।अपनी पुड़िया खोली ,मुंह में दबाया ,और गाड़ी से बाहर निकल कर, सड़क का मुआयना करने लगे! फिर अंशु से कहा,-"अंशु, तुम पानी के अंदर उतरो।"

अंशु बोला-"सर! अंदर घुसने से क्या होगा?"

प्रोफेसर साहब बोले-" तुम घुसो तो मैं बताता हूं।"

बेचारा अंशु क्या करता पानी में उतरा। प्रोफेसर साहब ,खुद ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गए और उचक उचक कर गाड़ी के अंदर से बोनट को देखने लगे ।
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था ,कि ,यह क्या हो रहा है।

इतनी देर अंशु पानी में खड़ा रहा, फिर उससे बोले -"यह बड़ा पत्थर यहां से हटाओ!मैडम! आप भी गाड़ी से उतरिये।"

मैडम भी गाड़ी से उतरकर ,गाड़ी के पीछे खड़ी हो गई।अब तो एक बंदा गाड़ी के आगे ,और दूसरा गाड़ी के पीछे।

फिर प्रोफेसर साहब बोले -"अंशु तुम्हारे पैर पर जो पानी का लेवल आ रहा है, उस पानी में तो, यह गाड़ी यहां से निकल जाएगी।तुम और मैडम ,दोनों गाड़ी को पीछे से धक्का लगाओ।मैं गाड़ी स्टार्ट करता हूं।"

मैडम और अंशु, दोनों मिलकर गाड़ी को धक्का लगाने लगे।
गाड़ी बेचारी, चें-चें करती रही। प्रोफेसर साहब एक्सलेटर दबाते रहे।फिर क्या था ,गाड़ी कूदकर पानी से बाहर आ गई। और प्रोफेसर साहब का मिशन कामयाब हो गया।उस दिन प्रोफेसर साहब ने , पानी का लेवल ,अंशु के पैर से नापा था!
(वाह!प्रोफेसर साहब ,क्या ज्ञान !!!)

वहां सड़क पर उपस्थित कई लोग
प्रोफेसर साहब के इस मिशन को देख रहे थे, और मिशन कामयाब होने पर उन्हें बधाई भी दी।

जब वो "हनुमान चट्टी" के आसपास पहुंचे तो अंधेरा हो चला था। सारी सड़क देखते ही देखते जाम हो गई, पता चला कि आगे लैंडस्लाइड हुई है ,इसलिए रास्ता बंद हो गया है।

चारों तरफ बड़ी-बड़ी गाड़ियां उसमें यह छोटी सी मारुति बेचारी खो सी गई! कहीं निकलने का कोई रास्ता नहीं था, थोड़ी देर में पता चला कि ,रास्ता सुबह खुलेगा। अब तो सबको, अपनी रात उसी गाड़ी में ही गुजारनी थी।

प्रोफेसर साहब ने अपनी सीट नीचे की और लेट गए, सभी को कहा-"ऐसे ही इसी में सब सो जाओ।"

उस दिन सभी ने बर्फीली हवाओं के बीच गाड़ी में ही रात बिताई।

सुबह रास्ता खुला तो सब वहां से "जानकीचट्टी" पहुंचे। फिर वहां से 6 किलोमीटर चढ़ाई (trekking) करके यमुनोत्री के दर्शन हुए।

इसके बाद सभी "यमुनोत्री "से गंगोत्री के लिए दूसरे दिन सुबह निकले। गंगोत्री की तरफ बढ़ते हुए अविश्वसनीय प्राकृतिक नजारों का आनंद ले रहे थे। गंगोत्री पहुंचकर वहां स्नान कर ,गंगोत्री माता के दर्शन किए। फिर सभी ने वहां के होटल में रात गुजारी।

दूसरे दिन प्रात काल सभी उठ कर ,नहा धोकर , नाश्ता कर सुबह 7:00 बजे केदारनाथ धाम के लिए निकले।

उत्तरकाशी से केदारनाथ की ओर वह जैसे-जैसे बढ़ रहे थे ,सड़कें वैसे वैसे ही सकरी और घुमावदार (narrow n twisted)होती जा रही थी। दोनों तरफ बड़ी बड़ी खाई देखकर वह सभी भयभीत हो रहे थे, परंतु प्रोफेसर साहब का पूरा ध्यान अपनी ड्राइविंग पर था।
वह सभी सांस रोक कर चुपचाप बैठे थे, की, अचानक!!

कुछ बड़ी-बड़ी गाड़ियां सामने खड़ी थी, उसी के बीच छोटी सी मारुति उन बड़ी -बड़ी गाड़ियों को टक्कर देती हुई जाकर खड़ी हो गई। सभी उस गाड़ी को देखने लगे।शायद, सभी यही सोच रहे थे कि, यह कौन वीर हैं जो यहां तक इस गाड़ी को लेकर चले आए हैं।

उस गाड़ी से प्रोफेसर साहब उतरे और पूछा-"यहां जाम क्यों लगा है?"

वहां खड़े लोगों ने कहा-"कुछ पत्थर गिर रहे हैं शायद लैंडस्लाइडिंग (landslide) होने वाली है!"

प्रोफेसर साहब 2 मिनट वहां खड़े रहे और फिर गाड़ी में बैठकर, अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को निहारने लगे। कभी पहाड़ को देखते, कभी घड़ी को, यह कौन सी गणित लग रही थी, ये सबकी समझ से परे था।

एक पत्थर गिरा, फिर दूसरे पत्थर के कितने का इंतजार करने लगे, दूसरा पत्थर गिरते ही बोले-"अंशु! ऊपर से पत्थर को नीचे आने में लगभग 1 मिनट का समय लग रहा है, और हम यह लैंडस्लाइड की दूरी 1 मिनट से कम में गाड़ी से पार कर सकते हैं।"

उनकी यह बात सुनते ही ,सभी की रूह कांप गई।

पीछे से पत्नी बोली-" अरे!!!! ऐसे कैसे निकालेंगे? कहीं पत्थर गाडी पर गिर गया तो। सभी खड़े है,आप गाडी निकाल लेगे?"

प्रोफेसर साहब बोले -"हां"

आगे बैठा अंशु बेचारा क्या बोलता?सोचा *प्रोफेसर साहब के साथ तो अच्छे फंसे हैं।*

प्रोफेसर साहब ने गाड़ी स्टार्ट कर दी, जैसे ही गाड़ी स्टार्ट हुई, पत्नी जोर से बोली-"अम्मा! आप कुछ बोलिए ना।"

वह क्या बोलती? आखिर वह अपने बेटे को अच्छे से समझती थी, और शायद उनका विश्वास भी था, बहू को चुप कराते हुए बोली-"चुप!!! चुप !! वह निकाल लेगा।"

पत्नी अकेले पड़ गई थी, सो जोर-जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगी।

प्रोफेसर साहब !अपना पूरा ध्यान उस पत्थर के गिरने पर लगाए हुए, गाड़ी स्टार्ट कर चुके थे! पत्नी की हनुमान चालीसा शायद उनका ध्यान भंग कर रही  था, सो डांटते हुए गुस्से से बोले-"बंद करो अपने हनुमान जी को।"

पत्नी चुप होकर ,आंखें बंद कर, मन ही मन "हनुमान चालीसा "पढ़ने लगी। गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी सभी कि सांसे रुकी हुई थी, गाड़ी ने अपना डेंजर जोन (danger zone)पार कर लिया था।

प्रोफेसर साहब के ,इस भयानक ज्ञान से, सभी भयभीत थे।सभी को अपनी सामान्य अवस्था में आने में ,थोड़ा समय लगा।

प्रोफेसर साहब की मारुति को निकलते देख, पीछे से दो चार बड़ी गाड़ी वालों ने भी हिम्मत दिखाई ,और वह लोग भी आगे आ गए। 5 मिनट बाद ही भयंकर लैंडस्लाइडिंग हुई,और रास्ता बंद हो गया।

प्रोफेसर साहब बोले -"देखा अगर हम ना निकलते तो पूरी रात यही रास्ते में फंसे रहते।"

तत्पश्चात,प्रोफेसर साहब ने सबको "केदारनाथ "और फिर "बद्रीनाथ " के दर्शन कराए।

इस प्रकार प्रोफेसर साहब की मारुति ने महज 8 दिनों में ,मारुति गति से, चार धाम यात्रा करा कर , सभी को घर पहुंचा दीया।
अतः "प्रोफ़ेसर साहब "और उनकी "मारुति " की साहसिक यात्रा , और सभी की ,रोमांचित(thriller),अविस्मरणीय(unforgettable),मनोहर प्राकृतिक दृश्यों (breathtaking scene),का सफर समाप्त हुआ।

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So, here is another interesting incident of the  PROFESSOR. Thank you guys for liking the previous story so much.

So me and my aunt decided to make it a series,
So, here it is -" THE PROFESSOR SERIES".

Shower your love by voting and leaving your valuable comments.

Till then be safe, be happy.

Neha❤

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