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प्रोफेसर साहब की विदेश यात्रा

(MY first attempt to make a poster. Hope it's good🙈😆)

प्रोफेसर साहब कॉलेज में पढ़ाने के अलावा एक "स्टडी सेंटर" (study centre) भी चलाते थे! जहां उनके स्कॉलर (Scholars) आकर उनसे रिसर्च के बारे में ज्ञान लेते थे।
      
             उसी समय उनका एक रिसर्च स्कॉलर सऊदी अरब से आया था, जो अपनी पीएचडी (P.Hd) इंडिया से कर रहा था पर नौकरी सऊदी अरब में करता था। उसने प्रोफेसर साहब के ज्ञान और अनुभव को देखते हुए कहा-
सर!  आप यहां कहां पड़े हुए हैं, आपको तो सऊदी अरब में बहुत अच्छा पद और पैसा मिलेगा ,आप कहां आवेदन (apply) क्यों नहीं करते।

प्रोफेसर साहब बोले- अच्छा!
पर हमें तो पता नहीं कैसे और कहां आवेदन करना है ,तुम मुझे बताओ मैं आवेदन कर देता हूं।

स्कॉलर ने  एक लिंक बताया और कहा -"आप इस पर अपना रिज्यूमे (resume) डाल दें।  आपके सब्जेक्ट कि जब यूनिवर्सिटी आएगी तो आपको मेल भेजेंगे।

प्रोफेसर साहब ने स्कॉलर के कहे अनुसार अपना रिज्यूम में डाल दिया!

कुछ दिनों बाद एक मेल आया दिल्ली से जिसमें इंटरव्यू के बारे में था जो 2 दिन चलेगा।

प्रोफेसर साहब ने अपने स्कॉलर को फोन लगाया और कहा-"एक यूनिवर्सिटी आ रही है और उसने इंटरव्यू के लिए बुलाया है।

स्कॉलर बोला-"सर!  मैं भी आपके साथ चलता हूं।"

सर ने कहा- "ठीक है।"

इंटरव्यू के दिन प्रोफेसर साहब और स्कॉलर दोनों एक होटल में  इंटरव्यू के लिए पहुंचे।
11:00 बजे सुबह से इंटरव्यू शुरू हो गया पर प्रोफेसर साहब का नंबर 4:00 बजे तक नहीं आया!

अपने स्वभाव के अनुसार प्रोफेसर साहब ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर सकते थे,  सो उन्होंने स्कॉलर से कहा -" चलो मुझे इंटरव्यू नहीं देना है।"

स्कॉलर बोला- "क्यों सर।"

"इतनी लंबी लाइन का इंतजार कौन करेगा, चलो।" वे उससे बोले।

स्कॉलर सोचने लगा *अरे ! ऐसे कैसे बिना इंटरव्यू के चले जाएंगे।*

वह अपने सर के मूड को समझता था तो बोला-
"सर !नंबर आ जाएगा थोड़ा और इंतजार कर लेते हैं, मैं आपके लिए जूस लेकर आता हूं।"

  वह सर के लिए, जूस और एनर्जी बूस्टर ( रजनीगंधा)लेकर आया और बोला -"सर !थोड़ी देर और इंतजार करते हैं।"

थोड़ी देर बाद प्रोफेसर साहब का नाम आया
प्रोफेसर साहब इंटरव्यू के लिए अंदर गए और आधे घंटे बाद प्रोफेसर अपना "अपॉइंटमेंट लेटर "( Appointment letter) साथ में लेकर प्रसन्न मुद्रा में बाहर आए!

  प्रसन्न इसलिए थे कि, उस दिन  जिसको भी अप्वाइंटमेंट लेटर मिला था या तो "एसोसिएट प्रोफेसर" (Assoc. Professor) या "असिस्टेंट प्रोफेसर"(assistant professor )का ही मिला था।  प्रोफेसर साहब को पहला  "प्रोफेसर" का अपॉइंटमेंट मिला था।

उस दिन प्रोफेसर साहब से ज्यादा उसका  स्कॉलर खुश था।
उसने कहा -" सर !मैंने कहा था आपको एक अच्छी पोजीशन मिलेगी।

कुछ दिनों बाद विदेश जाने के लिए सभी डॉक्यूमेंट तैयार होने लगे,सर्टिफिकेट के सत्यापन(verification) में लगभग 1  से 2 महीने लग गए।

इसी बीच एक दिन कंसलटेंट (Consultant) से मिले जिसने कहा-"सर आपके पीएचडी डिग्री का सत्यापन नेगेटिव आया है।"

प्रोफेसर साहब का तो दिमाग ही घूम गया।
ऐसा कैसे हो गया?
अब तो उस यूनिवर्सिटी की शामत ही आ गई।तुरंत यूनिवर्सिटी के "वीसी" (VC) को फोन लगाया गया और कहा गया-"मैं सारे डाक्यूमेंट्स आपको भेज रहा हूं आप इसे सत्यापित कराएं. मैंने "इस सन"( year) में इस यूनिवर्सिटी से "पीएचडी "किया है।
और मैं उस ईयर में "सिंगल स्कॉलर " (Single scholar)था जिसकी पीएचडी अवार्ड हुई थी। आपके स्टाफ की लापरवाही से, मेरे कैरियर को बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है! आनहींप जल्द से जल्द इसे तैयार करिए नहीं तो मैं पुलिस कंप्लेंट करूंगा।

  वीसी साहब ने प्रोफेसर साहब को शांत कराते हुए कहा-"अभी मैं डिपार्टमेंट से पूछता हूं ,आप चिंता ना करें।2 दिन के अंदर ,माफी के साथ ,दूसरा वेरिफिकेशन पोस्ट चला जाएगा।

वीसी साहब ने तुरंत उस  डिपार्टमेंट  से संबंधित सभी लोगों को "लाइन हाजिर "किया और कहा -"यह गलती कैसे हुई चेक करो और दूसरी सही रिपोर्ट लगाकर तुरंत पोस्ट करो।"
2 दिन के अंदर "पॉजिटिव रिपोर्ट "यूनिवर्सिटी से पहुंच गई।

तत्पश्चात, लगभग 2 महीने बाद वह दिन आ गया जब प्रोफेसर साहब को  सऊदी अरब( रियाद) के लिए उड़ान भरनी थी।

***********

"रियाद"  के लिए उड़ान भरने से पहले वह कुछ भय से ग्रसित थे।उनके अंदर बहुत से अनसुलझे विचारों (unknown thoughts) का बादल उमड़ घुमड़ रहा था!  जैसे- वह एक मुस्लिम देश है, वहां इतनी पाबंदियां (restrictions) हैं, स्वतंत्र विचारों वाले प्रोफेसर साहब  उन पाबंदियां को कितना सहन कर पाएंगे आदि नाना प्रकार के विचारों से परेशान होने लगे!

इसलिए उन्होंने सबसे पहले सऊदी अरब के नियम कानूनों का अध्ययन किया और वहां रहने वाले लोगों से जमीनी हकीकत जानकर, पूर्ण संतुष्ट होकर ही जाने का निर्णय किया.

अपनी पत्नी से बोले -"तुम्हें लेकर चल तो रहा हूं पर बहुत पाबंदियां के  बीच  जीना पड़ेगा!आप तैयार हैं?

पत्नी बोली- आप तैयार हैं तो मैं भी तैयार हूं!

प्रोफेसर साहब को ऊंचाई से थोड़ा डर  लगता था  इसलिए वह कभी भी जहाज (aeroplane) में खिड़की की तरफ नहीं बैठते थे। पर उनकी पत्नी इसमें निडर थी उनको हमेशा खिड़की की तरफ ही बैठना पसंद था  इसलिए  वह खिड़की की तरफ  बैठी और प्रोफेसर साहब अपनी सीट का विस्तर बना कर आंख बंद कर लेट गए। वह तभी उठते जब कुछ खाने का सामान आता।

लगभग 4 से 5 घंटे की उड़ान के बाद बस सऊदी अरब की जमीन पर उतर रहे थे ,ऊपर से यह धरती बहुत ही वीरान लगती थी रेत ही रेत और   मठ मैली  इमारतें ऐसा लगता था मानो किसी रेगिस्तान के कबीले में आ गए हो!
अपना भारत ऊपर से देखने में कितना हरा भरा, जंगल, नदी, हरियाली सभी कुछ था!
कितना विपरीत दोनों देशों का दृश्य ऊपर से दिखाई देता था।

एयरपोर्ट पर उतरकर प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी दोनों भयभीत थे।
प्रोफेसर साहब ने पत्नी से कहा-"अपना सिर ढको!

एयरपोर्ट से बाहर निकलकर प्रोफेसर साहब उस आदमी को ढूंढने लगे जो उन्हें लेने आने वाला था!पत्नी को एक जगह सामान के साथ खड़ा कर, उस व्यक्ति को ढूंढने चले गए पर उन्हें वह व्यक्ति नहीं मिला।
प्रोफेसर साहब थोड़ा परेशान हो गए।
थोड़ी देर बाद, होटल का एक व्यक्ति प्रोफेसर साहब के नाम का झंडा लेकर खड़ा था।
प्रोफेसर साहब ने उसे अपने बारे में बताया तो वह तुरंत सामान की ट्रॉली लेकर चलने लगा उसके पीछे प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी।

बाहर निकलते ही एक बड़ी शानदार गाड़ी में सामान रखा गया और प्रोफेसर साहब को बैठने के लिए कहा।
  प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी  उस शानदार गाड़ी में बैठे और होटल की तरफ चल दिए

  क्या चौड़ी चौड़ी सड़कें थी, चिलचिलाती धूप, सड़क के दोनों तरफ मिलो रेगिस्तान, लाल बालू के टीले, बिल्कुल शांत वीरान सा रास्ता, कहां जा रहे हैं कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
थोड़ी देर बाद एक शानदार होटल  के सामने गाड़ी लगी।
  होटल के अंदर पहुंचते ही लगा मानो स्वप्नलोक (dreamland) का कोई शहर हो, नीली ,गुलाबी ,लाइटों के सुंदर सजावट, चारों ओर शीशे की  दीवारें उसके आकार और भव्यता को और भी बढ़ा रहा था! जमीन  भी शीशे की तरह चमक रही थी!
होटल की भव्यता वहां की  रही सियत को बयां कर रही थी.

प्रोफेसर साहब से रिसेप्शन पर कुछ कागजी कार्यवाही पूरी कराई गई और उन्हें कमरे में पहुंचाया गया।दूसरे दिन प्रोफेसर साहब यूनिवर्सिटी पहुंचे।

क्योंकि प्रोफेसर साहब  की यूनिवर्सिटी" इलेक्ट्रॉनिक यूनिवर्सिटी "थी सो उनकी ज्यादातर क्लासेस वर्चुअल ही थी।
हफ्ते में 2 दिन "फेस टू फेस "क्लासेस होती थी बाकी 3 दिन वर्चुअल क्लासेस!
वहां का रविवार, शुक्रवार होता था अर्थात शुक्रवार और शनिवार 2 दिन का अवकाश होता था! रविवार से नया हफ्ता शुरू होता था!

वहां की  संस्कृति हमारे भारत से बहुत अलग थी।
कोई भी महिला, बिना पति ,भाई ,या पिता ,के बाहर अकेले नहीं जा सकती थी। सभी महिलाओं को, चाहे वह वहां की महिला हो ,या विदेशी महिला ,सभी को बुर्का पहनना और सिर ढकना अनिवार्य था।

वहां कोई भी सड़क पर पैदल  चलता नहीं दिखाई देता था ना रिक्शा ना साइकिल आदि सिर्फ बड़ी-बड़ी गाड़ियां जो 120 और 140 किलोमीटर की स्पीड से सड़कों पर दौड़ती थी!

वहां पांच बार नमाज पढ़ी जाती  थी उस नमाज को" सलाह" बोलते हैं! दुकानों को "बकाला "बोला जाता है!
जैसे ही "सलाह "का समय होता , सारी दुकानें यहां तक की, भव्य माल ,दफ्तर ,स्कूल ,कॉलेज, अस्पताल के प्रबंधन के  दफ्तर आदि सभी 15 से 20 मिनट के लिए बंद कर देते हैं और यह सिलसिला दिन में 5 बार चलता  है

अगर आप किसी मॉल या दुकान में सामान लेने उस समय गए हैं तो आपको आधे घंटे बाहर इंतजार करना पड़ेगा उसके बाद ही आपको सामान मिलेगा!
वहां मूर्ति पूजा का भी विरोध है, अगर किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी  की,आपके यहां मूर्ति पूजा होती है तो वहां के रिलीजियस पुलिस आपको पकड़ कर ले जाती है,  पीटती भी है और जुर्माना भी लगाती है।

   रोजे के समय तो यह नियम और भी कठिन हो जाते हैं,  सारी दुकानें  सुबह से शाम 6:00 बजे तक बंद रहती हैं
शाम 6:00 बजे रोजा खोलने के बाद ही दुकानें खोल दी थी और रात 3:00 बजे तक खुली रहती थी रोजे के समय पूरी रात रौनक रहती थी और पूरा दिन वीरान!
रोजे के समय सिर्फ ऑफिस से 2 से 3 घंटे के लिए खुलते  है!

    रोजे में आप सड़क पर निकलकर पानी भी नहीं पी सकते,
अगर सड़क पर आपने मुंह में कुछ लिया है ,या चबा रहे हैं तो उसे जुर्म समझा जाता है! जो व्यक्ति सड़क पर ऐसी हरकत करते हैं उससे सऊदी भाई लोग बहुत चिढ़ाते और विचलित होते हैं!

लेकिन अगर आपको "रिलीजस पुलिस "ने देख लिया तो डंडे भी मारती है और गाड़ी में भरकर ले जाती हैं!
इन सब नियमों का पालन कराने के लिए वहां "रिलीजस पुलिस "होती है जिसे "मतऊआ" कहते हैं! यह ज्यादातर मस्जिदों के मौलवी होते हैं!इन सब प्रतिबंधित नियमों को देखते ,भयभीत जीवन जीते, उसे अपनाते हुए 6 महीने बीत गए।

1 दिन प्रोफेसर साहब को किसी ने "इंडियन ग्रुप" के बारे में बताया। प्रोफेसर साहब उस ग्रुप से जुड़े तब पता चला कि, हम जितना भयभीत होकर यहां जीवन जी रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है! जो पुराने भारतीय 20 साल से वहां रह रहे थे, उन्होंने बताया हम तो अपने सारे त्यौहार पूजा पाठ सभी कुछ करते हैं! अपने घर के अंदर हम कुछ भी कर सकते हैं, पर थोड़ा बचकर।

उन्होंने बताया हमारा ,250 लोगों का समूह है और सारे त्यौहार  हम एक साथ मनाते हैं, एक परिवार की तरह।एक बड़ा सा कोई स्थान लिया जाता है ,जो अंदर से तो बहुत खुला ,मैदान, हॉल सभी होते हैं पर बाहरी दीवार बहुत ऊंची होती है! मेन गेट बंद कर देने पर पूरा एरिया लॉक हो जाता है!
अब उसके अंदर बुर्के की जरूरत नहीं होती, वहां पर पूरा धमाल होता है खाना ,नाचना ,खेलना ,गाना  आदि!
पार्टी में बुर्के के अंदर से ऐसे ऐसे  कटे-फटे कपड़ों वाली हसीनाएं निकलती थी की, दिल्ली की पार्टी भी फेल हो जाती थी।

1 साल के बाद ही रिलीजियस पुलिस का अधिकार नए प्रिंस ने कम कर दिया और सऊदी अरब के कड़े नियमों में काफी राहत हो गई फिर जीवन सामान्य सा लगने लगा।

प्रोफेसर साहब क्योंकि ,इलेक्ट्रॉनिक यूनिवर्सिटी में थे तो वहां पर हर 6 महीने पर एक मूल्यांकन होता था कि किस टीचर ने अपने बच्चों को पढ़ाने में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक टूल्स (electrical tools) का इस्तेमाल किया है।

6 महीने के बाद प्रोफेसर साहब के पास एक मेल आया और उसमें 10 नामों की लिस्ट थी, प्रोफेसर साहब ने मेल पड़ा और बंद करते हुए पत्नी से बोले-"यूनिवर्सिटी ने एक लिस्ट निकाली है कि कौन टूल्स यूज नहीं करता है! उसमें मेरा नाम नहीं है, मैं तो सुरक्षित हूं।

पत्नी ने सुनकर कहा-' अच्छा है।"

4 से 5 घंटे बाद प्रोफेसर साहब के किसी साथी ने फोन किया और उनसे कहा
"सर! आपने मेल पड़ा है?"

प्रोफेसर साहब बड़े आत्मविश्वास से बोले हां देखा है।

सर !यहां टूल्स यूज करने का भी मूल्यांकन किया जा रहा है।

प्रोफेसर साहब बोले- अच्छा है

उसने कहा- सर! यह लिस्ट "10 बेस्ट टूल्स यूजर" की आई है।

प्रोफेसर साहब थोड़ा चुप रहे और बोले अच्छा!

फिर चुपचाप फोन रख कर लैपटॉप खोल लिया और फिर से मेल पढ़ने लगे।
जब मेल को ठीक से पढ़ा था सोचा *अरे! मैं तो टूल्स यूज करने में फेल हूं।*

क्योंकि प्रोफेसर साहब टेक्नोलॉजी (technology) में ज्ञान रखते थे सो उन्हें बहुत ग्लानि (regret) हुई की उनका नाम इस लिस्ट में नहीं है!

तत्पश्चात प्रोफेसर साहब ने टूल्स पर काम करना शुरू कर दिया, 6 महीने बाद पुनः मूल्यांकन लिस्ट आई, इस बार प्रोफेसर साहब का नाम लिस्ट में सबसे ऊपर था और उनको अंक मिले थे 800, लिस्ट में दूसरे नंबर वाले टीचर के अंक थे 200

800 से 200 के बीच का अंतराल इतना ज्यादा था कि सभी आश्चर्यचकित थे की प्रोफेसर ने ऐसा कौन सा टूल प्रयोग किया है  की इनकी रेटिंग 800 पहुंच गई!
अब तो यूनिवर्सिटी में पूरा शोर हो गया! सभी के फोन आने लगे और सभी पूछने लगे, प्रोफेसर साहब आपने ऐसा क्या किया कि आपकी  रेटिंग इतनी  ज्यादा हो गई!
  डीन ने भी प्रोफेसर साहब की मीटिंग में बहुत तारीफ की।

पर इस देश में भेदभाव बहुत था। सऊदी भाई लोग यह स्वीकार नहीं कर पाए कोई भारतीय( बाहरी देश) व्यक्ति अग्रणी हो! वह हमेशा सऊदी भाइयों को ही  आगे देखना चाहते थे सो अगली बार "टूल्स यूज का मूल्यांकन" करना ही बंद कर दिया।

**************
एक बार प्रोफेसर साहब को अपने इलेक्ट्रॉनिक ज्ञान को वहां भी  दर्शाने  का मौका मिल गया।

1 दिन प्रोफ़ेसर साहब के ऐसी पर बर्फ की एक परत जमने लगी और AC जाम होने लगा!
उस समय रोजे के दिन चल रहे थे जैसा कि वहां रोजे के दिन सारी दुकानें बंद रहती थी इसलिए इलेक्ट्रॉनिक्स की भी दुकानें बंद थी
अतः इसी बनाने वाला मिलना मुश्किल था!
वहां पर ऐसे ही चलता था ,पंखा नहीं था शो बिना एसी के काम नहीं चल सकता था!

प्रोफेसर साहब ने अपने किसी जानने वाले को फोन लगाया और कहा -"मेरे  AC में कुछ प्रॉब्लम है कोई ऐसी वाला हो जो इस समय काम कर दे।"

पर उस व्यक्ति ने कहा-"सर! इस समय तो बहुत मुश्किल है फिर भी मैं देखता हूं।"

प्रोफेसर साहब ने 2 से 3 घंटे इंतजार किए पर कोई नहीं आया तो उनके अंदर का इलेक्ट्रीशियन (electrician) जाग गया और खुद ही पेचकस , पिलास लेकर ऐसी खोलने लगे और  उसका निरीक्षण करने लगे।

निरीक्षण कर पत्नी से बोले- इसमें कुछ नहीं हुआ है  इसकी सर्विसिंग नहीं हुई है इसलिए जाम हो रहा है!
सफाई हो जाएगी तो सही हो जाएगा।"

वहां के घरों में ज्यादातर एक या दो खिड़कियां होती थी वह भी ऊपर की ओर, AC उसी ऊपर के विंडो में फिट थी।

प्रोफेसर साहब के बाद सुनकर पत्नी बोली -"पर यह ऐसी नीचे कैसे आएगी."

प्रोफेसर साहब बोले -"मैं और तुम दोनों मिलकर इसे नीचे ला सकते हैं।"

पत्नी बोली -"इतना भारी ऐसी होता है मैं तो नहीं उठा पाऊंगी।"

पर, प्रोफेसर साहब कहां मानने वाले थे बोले -"मैं जैसे बताता हूं वैसे  उतारोगी तो उतर जाएगा।"

फिर पत्नी को अपने ट्रिक्स एंड टिप्स (tricks and tips) समझाने लगे।

पत्नी बोली- अरे! नहीं हो पाएगा, गिर गए तो हाथ, पांव और टूट जाएगा।किसी को बुलाइए कोई मिल जाएगा जो ऐसी उतार दे और फिर ऊपर चढ़ा दे।

प्रोफेसर साहब थोड़ा झुंझला कर बोले- इस समय कोई नहीं मिलेगा ,नहीं तो फिर रहो गर्मी में।

प्रोफेसर की पत्नी को गर्मी बहुत लगती थी तो आधे घंटे में ही पसीना- पसीना होने लगी क्योंकि पंखा भी नहीं था तो केवल ऐसी का ही सहारा था!

गर्मी से परेशान पत्नी बोली-अच्छा बताएं क्या करना है?

बेड खिड़की के नीचे था, प्रोफेसर साहब उठे! बेड और  खिड़की की  दीवाल के बीच एक  स्टूल  रखा और पत्नी से बोले- तुम अपना एक पैर बेड पर रखो दूसरा  स्टूल पर इसी को  इस साइड से यहां से पकड़ो, मैं दूसरे साइड से लगभग पूरा लोड अपने ऊपर ही लूंगा, तुम्हें थोड़ा बैलेंस बनाना है!

फिर क्या था, प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी दोनों मोर्चा संभालने को तैयार थे!

AC को प्रोफेसर साहब ने ठोक ठोक कर बाहर किया और उठाने को कहा।
जैसे ही इसी ने अपना सॉकेट छोड़ा।
.
.
.

धड़ाम!!! 

धड़ाम!!! 

धड़ाम!!!

AC बेड पर,प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी जमीन पर धड़ाम!!!

2-3 सेकंड तक दोनों एक दूसरे को shock से एक दूसरे को देखते रहे।

फिर प्रोफेसर साहब उठ कर खड़े हो गए और पत्नी से पूछा-"चोट तो नहीं लगी?

पत्नी भी गुस्से में थी तो झुंझला कर बोली- पता नहीं क्या करते हैं और क्या करवाते रहते हैं!"
फिर वह भी उठकर खड़ी हो गई!

पत्नी को एक भी खरोच तक नहीं आई थी पर प्रोफेसर साहब के हाथों से खून बह रहा था।

पत्नी ने देखा तो  कहा -"यह तो खून बह रहा है।

प्रोफेसर साहब बोले-" कुछ नहीं ठीक हो जाएगा और कैलेंडुला (calendula) लगाकर एक पट्टी बांध  ली।

फिर पत्नी से बोले -"चाय बनाओ!"

पत्नी चाय और बिस्कुट लेकर आई और दोनों बेड पर बैठ कर चाय और बिस्किट खाने लगे!
प्रोफेसर साहब चाय पीते पीते कभी  बेड पर पड़ा AC और कभी खिड़की देखते और फिर उठकर AC को
स्टूल की तरफ खिसका कर सफाई की।

अब  AC को फिर से ऊपर चढ़ाने की बारी आई।

प्रोफेसर साहब ने सोचा*बाहर किसी को देखता हूं दुकान या कहीं कोई व्यक्ति  दिख जाए तो उसे प्रार्थना करके   ले आऊं.*

यह सोचकर प्रोफेसर साहब बाहर निकल गए।15 मिनट बाद आए तो बोले -"कहीं कोई नहीं मिल रहा है।बस इसे ऊपर चढ़ाना है ऐसी तो बिल्कुल ठीक हो गई है।

फिर बेड पर बैठकर सोचने लगे,
पत्नी भी जा कर बैठी और बोली -"अब यह ऊपर कैसे जाएगा?

प्रोफेसर साहब यह तो समझ चुके थे कि पत्नी गुस्से में है, तो बड़े प्यार से पत्नी की तरफ देख कर बोले-
डार्लिंग!  एक बार फिर से कोशिश करते हैं।

पत्नी- कोशिश!
अब क्या हाथ ,पैर भी तुड़वा आएंगे क्या?"

प्रोफेसर साहब पत्नी को समझाने लगे-"
देखो!  हमें समझ आ गया है कि तुमने कहां गलती की थी, अब वह गलती नहीं होगी तो आसानी से ऊपर चला जाएगा बस थोड़ी हिम्मत बनाओ! कुछ नहीं होगा!

पत्नी 10 मिनट बाद बोली-"अच्छा बताएं क्या करना है?"

प्रोफेसर साहब उठे और AC को स्टूल पर से थोड़ा आगे करते हुए बोले-"देखो! पिछली बार तुमने अपनी उंगली और हथेलियों का इस्तेमाल किया था इसलिए बैलेंस नहीं बन पाया।इस बार अपने हाथ का क्षेत्रफल (area) बढ़ाओ, अपना पूरा हाथ  कोहनी तक  AC के नीचे लगाओ ताकि पूरा भार  हाथ पर  हो और तुम्हें ज्यादा भार भी महसूस नहीं होगा।"

पत्नी हिम्मत बनाकर कमर कस कर खड़ी हुई ,और प्रोफेसर के कहने के अनुसार अपने हाथ को फैला कर AC का  भार पूरे हाथ पर ले लिया! दूसरी तरफ से प्रोफेसर साहब ने उसी तरह ही अपने हाथों पर  भार लिया और  एसी ऊपर उठाने को कहा!

इस बार 2 सेकंड भी नहीं लगा एसी अपने सॉकेट में जाकर फिट हो गया ना AC का  भार पता लगा नहीं ऊपर उठाने में कोई कठिनाई.

इस प्रकार प्रोफेसर साहब  का "AC  मिशन" भी कामयाब हो गया!
AC  चलने लगा, प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी एसी  की ठंडी हवा का आनंद लेने लगे!

इस प्रकार प्रोफ़ेसर साहब ने वहां 3 साल आनंद पूर्वक चिंता मुक्त जीवन व्यतीत किया!
    
             
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This is a special update for my beautiful Mausi and handsome Mausa Ji. As today is their wedding anniversary!!!!
A very happy wedding anniversary Badki Mausi and Mausaji ❤❤❤

Hope you all liked this part. Do let me know your views through comments.

Till then bye,
Your writer
Neha❤

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