अब तो ये आँसू भी सूख चुके
अब तो ये आँसू भी सूख चुके
जब साथ छोड़ गये थे सब,
तब खुद को मैंने सवारा था,
जब दिल तोड़ गये थे सब,
तब मन को पत्थर मैंने बनाया था,
अब तो से आँसू भी सूख चुके,
ना जाने कितना मैंने इन्हें बहाया था।
टूट गई थी मैं,
जब खुद को अकेला पाया था,
सहम गई थी मैं,
जब सब ने मुझे धुतकारा था,
अब तो ये आँसू भी सूख चुके,
ना जाने कितना मैंने इन्हें बहाया था ।
जब गिरगिट बन गये थे सब,
तब मैने भी खुदको बदला था,
जब तोड़ गये थे उम्मीद सब,
तब मैंने खुद की हिम्मत को बांधा था,
अब तो ये आँसू भी सूख चुके,
ना जाने कितना मैंने इन्हें बहाया था।
~ विप्रांशी सिंह
(Vipranshi Singh)
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