Chào các bạn! Vì nhiều lý do từ nay Truyen2U chính thức đổi tên là Truyen247.Pro. Mong các bạn tiếp tục ủng hộ truy cập tên miền mới này nhé! Mãi yêu... ♥

कण-कण में 'कर्ण'

पांडवों को तुम रखो
मैं कौरवों की भीड़ से,
तिलक शिकस्त के बीच में
जो टूटें ना वो रीढ़ मैं।

सूरज का अंश होके,
फिर भी हुँ अछूत मैं,
आर्यावर्त को जीत ले,
ऐसा हूँ सुतपूत मैं।

कुंती-पुत्र हूँ मगर,
न हूँ उसी को प्रिय मैं,
इंद्र माँगे भीख जिससे
ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं।

आओ मैं बताऊँ
महाभारत के सारे पात्र ये,
भोले की सारी लीला थी,
किशन के हाथों सूत्र थे।

बलशाली बताया जिन्हें,
वो सारे राजपुत्र थे।
काबिल दिखाया बस
लोगों को ऊँची गोत्र के।

सोने को पिघला के डाला,
शोण तेरे कंठ में,
नीची जाति होके किया
वेद का पठन तूने।

यही था गुनाह तेरा
तू सारथी का अंश था,
तो क्यूँ छिपे मेरे पीछे
मैं भी उसी का वंश था।

ऊँच-नीच की ये जड़
वो अहंकारी द्रोण था,
वीरों की उसकी सूची में,
अर्जुन के सिवा कौन था?

माना था माधव को वीर
तो क्यूँ डरा एकलव्य से?
माँग के अँगूठा क्यूँ?
जताया पार्थ भव्य हैं।

रथ पे सजाया जिसने
कृष्ण-हनुमान को,
योद्धाओं के युद्ध में
लड़ाया भगवान को।

नंदलाल तेरी ढाल
पीछे आंजनेय थे,
नियति कठोर थी
जो दोनों वंदनीय थे।

ऊँचे-ऊँचे लोगों में
मैं ठहरा छोटी जात का,
खुद से ही अनजान मैं
न घर का, न घाट का।

सोने-सा था तन मेरा
अभेद्य मेरा अंग था,
कर्ण का कुंडल चमका
लाल-नीले रंग का।

इतिहास साक्ष्य है
योद्धा मैं निपुण था,
बस इक मजबूरी थी
मैं वचनों का शौक़ीन था।

अगर न दिया होता वचन
वो मैंने कुंती माता को,
तो पांडवों के खून से
मैं धोता अपने हाथों को।

साम-दाम-दण्ड-भेद
सूत्र मेरे नाम का,
गंगा माँ का लाडला
मैं ख़ामख़ा बदनाम था।

कौरवों से होके भी
कोई कर्ण को न भूलेगा,
जाना जिसने मेरा दुःख
वह कर्ण-कर्ण बोलेगा।

भास्कर पिता मेरे
हर किरण मेरा सुवर्ण हैं,
वन में अशोक मैं,
तू तो खाली पर्ण हैं।

कुरुक्षेत्र के उस मिट्टी में
मेरा भी लहू जीर्ण हैं,
देख छानकर उस मिट्टी को
कण-कण में 'कर्ण' हैं।

♥️♥️♥️

Bạn đang đọc truyện trên: Truyen247.Pro