.81. एक रात की बात
काली है रात
काला है अंबर
न है आज चांद
न ही तारों का कंबल
बस अंधेरा है यहा
गूंजता है सन्नाटा
कभी ज़ोर से चिल्लाता है
घड़ी का एक काटा
समय है अजीब
घड़ी भी घबरा गई
तेरी हर एक धड़कन के धड़कने से
मेरी रूह भी आज काँप गई
चिल्ला के कहा उसने
ना जाओ मुझे छोड़
कराहते हुए कहा उसने
ना मुडो तुम उस मोड़
मगर तुम न मानी
बढाए अपने कदम
तोड़ दिए वह वादे
जो निभाने थे सातो जनम
चुरा के रोशनी मेरे आँगन की
भाग गई तुम दिल से मेरे
छोड़ कर मेरे लिए तनहाई
और यह शांत सहमे से अंधेरे
मेरा चांद थी तुम
मेरे तारे थी तुम
ए मेरी प्यारी हसी
मेरा वजूद थी बस तुम
ए मेरी प्यारी हसी
तुम्हारे बिना में हो गया हूँ गुम
हा में हो गया हूँ गुम
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