
दरमियां...
बाकी ना दरमियां ,
जब अपने कुछ रहा।
ना हमने कुछ सुना,
ना तुमने कुछ कहा।।
ना लब हिले,
ना खामोशी हुई रुसवा ।
बस नजर मिली,
कुछ सीने में चुभा।।
ना रुखसति तूने ली,
ना अलविदा हमने कहा।
मिलना तो अधूरा रहा बहुतों का,
अपना तो बिछडना भी अधूरा रहा।।
तनहा था सफर,
साथ हो कर भी तेरे।
तू ना रहा साथ,
तब भी तनहा ही रहा।।
कुछ गुफतगू थीं बाकी,
अधूरी की अधूरी रह गई।
हर पल तेरे जाने के बाद,
वो याद भी अधूरी रह गई।।
अब तो हर लम्हा खामोशी है,
एक वीरानी ही छाई है।।
बरसों लगे भुलाने में तुझे,
आज अचानक ना जाने क्यों तेरी याद आई है।।
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