एक उमर गुजरी है तलाश मेंएक अरसा गुजारा है इनतजार में,
भटके बहुत , तडपे बहुत,अब आस भी टूट गई,के कभी रुह को नसीब होगीएक छांव, एक आशियाना।
आलिशान महल की हसरत ही कब थी,तलाश तो बस एक घर की।
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