
अलविदा
शोर बढा है भीतर बहुत,
कोई तो खामोशी को मेरी आवाज दो।
न रुकती हैं न थमने देतीं है मुझे,
कोई तो इन सांसों की लय को आराम दो।।
मुद्दत से झूठी उम्मीदों मे जीती आ रही हूं
आज कोई आगे बढकर झूठी दुनिया से निकाल दो।
छोटी कोशिशों से कहां होता है आसमां हासिल
इन हारे पंखों को कोई तो जला दो।।
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