
अनकहि
सोचा था समेट लूंगी तुझे बाहों मे अपनी
कुछ ऐसे सावरूंगी की जैसे कभी टूटा हि नहीं।
अब जब तु मेरा है, तो आलम ये है
की रोज़ बिखर रही हुँ, हर लम्हा तुझसे दूरी बढ़ रही
हर लम्हा तुझे खोने का डर है
हर पल् तेरे ना हो पाने का डर है
कैसे खो दूँ तुझे ऐसे ही
या बस जाने दूँ तुझे ऐसे ही
खुशियो से बना है रोम् रोम् तेरा पर
शायाद गमों की बनी है हस्ती मेरी।।
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