
घर कहीं गुम हो गया है।
कुछ देखे देखे से लगते हैं ये गली-कूचे,
कुछ जाने-पहचाने से लगते हैं ये दरो-दीवार,
फिर क्यों नहीं लगता यहाँ अपना सा?
फिर क्यों नहीं दिखता यहाँ कोई अपना सा?
नहीं, दरो-दीवार नहीं!
नहीं, गली-कूचे नहीं!
कुछ मीठी बोलियों से था,
कुछ खट्टी इमली की गोलियों से था,
दादा-नाना की कहानियों से था,
दादी-नानी की लोरियों से था,
था... यहीं कहीं तो था...
जो गुम हो गया है...
दिखे कहीं तो इत्तला देना
मेरा घर कहीं गुम हो गया है।
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