एक और तमन्ना (Failed_cardiac)(1)
एक और तमन्ना
पल पल बीतते पलों को
मेरे दिल ने फिर पुकारा
जाती हुई रैना को
चाहे रोकना जैसे चन्द्रमा ।
अंबर की सूनी आँखें
निहारती ओझल हुए काजल को
जा बिछा भूमि पर जो
बन किसी संगीत का स्वर ।
अंधेरे कोनो में
तलाशने को रौशनी के झरोखे
हूँ फिरती अजनबी गलीयों मे
पाने को कभी एकांत से लम्हे ।
है तमन्नायें कितनी
गुलज़ार सी जिंदगी में
सुगन्धित पुष्प सी
कुछ जायज तो बहुत सी नहीं
बिन इनके मगर
है सिमित अनंत भी ।।
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