०१ | डर
डर लगता है मुझे जहान से।
उसमे रहने वाली इस भीड़ से।
ये कैसी भीड़ है जो
न खुश होती
है न दुखी?
ये कैसी भीड़ है जो
जाने ना इंसानियत
ना प्यार?
ये कैसी भीड़ है जो
जानती हो
सिर्फ दौड़ना?
जब तक मौत ना आए,
तब तक बस दौड़ते है।
रिश्तों से, ज़िमेदारी से,
खुद से।
छोड़ गया निशानी
अपनी दूर कहीं,
जहां उसके सपनों की चिता
अभी भी जल रही हो।
ज़िंदगी के खेल में
इतना गुम गया,
की दो पल का
चैन भूल गया वो।
डर लगता है इस जहान से,
उसमे बसने वाली इस भीड़ से।
डर लगता है की कहीं
किसी दिन में भी इनके
जैसे न बंजाओ।
- 4th August, 2023.
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