Chapter 22 - Palak (part 2)
नमस्ते दोस्तों, समय सीमा छोटी होने के बावजूद मैंने दिल लगाकर इस चैप्टर को लिखा है। लेकिन इसके बाद भी अगर कोई कमी हो तो प्लीज़ संभल लीजिएगा। और अपने कमाल के एक्स्पीरियंस इस चैप्टर के कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करिएगा।
मैं जानती हूं कई छुपेरुस्त पाठक भी इस कहानी को बिना भूले पढ़ रहे है। लेकिन गुमसुम रहने से आप मेरे लिए सिर्फ़ एक अंक बनकर रह जाएंगे। इसलिए प्लीज़ इस कहानी को अच्छी रेटिंग दे और अपनी खुशी तथा अनुभव मेरे साथ यहां साझा कर हमारी इस यात्रा का हिस्सा बने। मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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कहानी अब तक: "वैसे तुम ठिक तो हो?" मैडम के सवाल पर मैंने 'ना' में सर हिलाया। "अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो बेझिझक बताना। हमारे ऑफ़िस की सबसे होनहार एंप्लॉय की मदद कर के हमें खुशी होगी।" तब अपनी बात ख़त्म करते हुए मैडम ने हलकी मुस्कान के साथ कहा।
उसके बाद मैडम से इजाज़त मांगते ही मैं अपने काम पर वापस लौट गई। मगर मुझे यहीं बता चुभ रही थी कि कहीं मैडम इस घटना की गहराई से जांच न करवाए। क्योंकि, अगर ऐसा हुआ ये बात सामने आ सकती है कि उस शाम किसी बस्ती वाले ने हमारी मदद नहीं की थी। अपने इन्हीं खयालों को मन में दबाए मैं अपने काम पर लौट गईं।
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अब आगे...
दोपहर 1:35 बजे ।
लंच टाइम पेहले ही हो चुका था। मगर मैं अपने काम में इतनी खोई हुई थी कि उसी में लगी रही।
"पलक? क्या यार तुम भी.?! लंच टाइम हो चुका है। क्या तुम्हे भूख नहीं लगी?" मैंने पीछे से सलोनी को कहते सुना और वो अपनी सीट से उठकर मेरी बाजुवाली सीट पर आकर बैठ गई।
"हं... बस दो मिनट। ये हो ही गया।" मैंने कंप्यूटर के कीबोर्ड पर तेज़ी से अपनी उंगुलिया चलाते हुए जवाब दिया।
"तुम दोनों अब तक यहीं हो!?" अचानक अपने पीछे से आर्या की आवाज़ सुनकर मैं खड़ी हो गई और मैंने पीछे पलटकर देखा।
अपनी कैबिन से निकलकर, "लगता है मेरा ही इंतज़ार हो रहा था।" दो पल के मेरी ओर गहरी नजरों से देखते ही उसने अपनी नज़रे सलोनी की ओर मोड़ दी। हमारी तरफ़ बढ़ते हुए आर्या ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा ।
वैसे तो हर बार आर्या का बर्ताव मेरे प्रति हमेशा ही अजीब और उलझा हुआ था। लेकिन आज तो उसका मिजाज़ कुछ ज़्यादा ही बदला-बदला सा था।
"ज़्यादा खुशफेमी में मत रहो। मैं पलक के लिए वेट कर रही थी।" सलोनी ने यूंही आर्या को छेड़ते हुए, "वैसे हमारा दिल काफ़ी बड़ा है। तुम चाहो तो हमारे साथ चल सकते हो।" मज़ाक में कहा और अपनी आंखें घुमाते हुए मेरी तरफ देखा। और मैंने मुस्कुराते हुए अपना चेहरा हाथ के पीछे छुपा लिया।
"हां, वो तो मैं जानता ही हूं। लेकिन तुम बातें बहोत कम करती हो।" सलोनी के जवाब में आर्या ने पहेली नुमा नजरों से मेरी तरफ देखकर कहा। "पर कोइ बात नहीं।" और तुरंत अपनी नज़रे सलोनी की तरफ मोड़ दी।
पलक • आर्या • सलोनी
पता नहीं आर्या क्या और किसे ये कहना चाहता था? वो आज कुछ ज्यादा ही रहस्यमय ढंग से पेश आ रहा था। पता नहीं वो बार-बार मुझे क्या जताना चाहता था? उसकी वो घुमावदार बाते और असाधारण हरकतें मेरी समझ के बाहर थी। लेकिन उन दोनों को हंसते देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। और मैं उनकी ये हसी छिनना नहीं चाहती थी।
"जो भी हो। लेकिन क्या अब हम कैंटीन चले? वैसे भी हम पेहले ही काफ़ी समय बर्बाद कर चुके हैं।" अचानक सलोनी ने घड़ी की सुइयों को भागते देखकर कहा।
परमात्मा का शुक्र है कि आखिरकार आर्या और सलोनी की हल्की-फुल्की नोकझोल ख़त्म हुई और हम लंच के लिए कैंटीन पहुंचे।
इसी तरह ऑफ़िस में हमारा आज का दिन बिना किसी परेशानी से गुजर गया। और सामान्य दिनों की तरह सलोनी मुझे महल के पास छोड़कर घर चली गई।
शाम 8:30 बजे।
मेरे महेल में आते ही मुझसे मिलने के कुछ देर बाद चंद्र वापस कहीं चला गया था। और उसके जाते ही मैंने अपने रोज़ के काम तेज़ी से निपटा लिए। ताकि चंद्र के लौटने पर मैं अपने जेहन में उमड़ते सवालों के जवाब जान पाऊं।
अपने ऊपर वाले कमरे में जाते ही कुछ देर आराम करने के बाद फ्रैश होकर मैंने अपना हल्का नारंगी ड्रेस पहना और नीचे हॉल तक पहुंची। घर में आसपास की चीजों को उठाकर साफ करने के बाद मैंने किचन का सारा काम ख़त्म किया। और खाना लेकर डायनिंग टेबल पर आ गई।
सोया नगेट्स पुलाओ, धनिए की चटनी और टोमेटो सलाद सब मेरे सामने टेबल पर सजा था। लेकिन मेरे मन में आई सोच के कारण मैं प्लेट लेकर यूंही ख़ामोश बैठी रही।
"खाना खाने से भूख मिटेगी।" अचानक चंद्र की आवाज़ सुनते ही मेरे खयालों का बुलबुला फट गया और मैंने मुड़कर उसकी ओर देखा। "खाने को यूंही घूरते रहने से भूख नहीं मिटने वाली।" और मेरे पास आते हुए चंद्र ने मंद मुस्कान के साथ कहा।
चंद्र की तरफ़ देखते ही, "नहीं, वो मैं बस तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी।" मैंने हड़बड़ाहट में पर धीरे से कहा और इससे पहले कि चंद्र फिर मुझे खाने के लिए टोकता मैंने तुरंत खाना प्लेट में लेना शुरु कर दिया।
अगले ही पल मेरे सामने दाई ओर रखी कुर्सी पर बैठते ही, "तुम कुछ परेशान लग रही हो। क्या कुछ हुआ है? कुछ कहना चाहती हो?" चंद्र ने अपनी कमाल की शुक्ष्म दृष्टि से मेरा विश्लेषण करते हुए कहा।
मुझे नहीं मालूम था कि चंद्र मुझे इतने अच्छे से जानने लगा था। मेरे चेहरे के हावभाव और मेरे क्षीण बर्ताव से वो समझ चुका था कि मेरे मन में कुछ गंभीर बात हलचल मचा रही थी। उसने सिर्फ़ मुझे देखकर ये जान लिया था कि किसी बात को लेकर मेरे दिमाग़ में उथल-पुथल मची हुई थी।
"नहीं मैं बस कुछ सोच रही थी।" मैंने अपने डर को नज़रंदाज़ करते हुए कहा। "मैं बस तरंग और पूर्वा की कहानी के बारे में सोच रही थी।" और साथ ही चंद्र के अनकहे सवाल के लिए भी व्याख्या कर दी।
"मैं समझ सकता हूं, पलक। लेकिन तुम्हें इन चीजों के बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। अगर तुम्हें कुछ जानना है तो मुझसे पूछो। मैं तुम्हें बताऊंगा। मगर इस तरह की पारलौकिक बातों को अपने मन में दोहराते रहने की ज़रूरत नहीं। इन मनहूस सायों और इनकी दुनियां से तुम जितना दूर रहो उतना अच्छा होगा।" चंद्र ने तसल्ली से मुझे देखा और गहरी सोच के साथ कहा।
चंद्र की सोच और मुझे लेकर उसकी चिंता बिल्कुल जायज़ थी। लेकिन इस पारलौकिक दुनियां और इन सायों से दूर रहना मेरे लिए नामुमकिन सा था। मैं इन चीजों के बारे में जाने बगैर और चंद्र से दूर नहीं रहे सकती थी।
चंद्र की बात पर गौर करते हुए, "शुक्रिया, चंद्र। मैं अब वैसा ही करूंगी जैसा तुमने कहा।" मैंने धीरे से कहा और अपनी प्लेट से खाना खाना शुरु किया।
"असल में, मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि अगर तरंग पूर्वा को उसके एस्ट्रल बॉडी में देख सकता था तो वो अपने भाई की रूह को क्यूं नहीं देख पा रहा था?" इसी बीच गहरी सोच के साथ कहते हुए मैंने चंद्र की झलक ली ।
तभी अपनी नज़रे हल्की सी झुकाते हुए, "शायद तरंग का भाई उसके सामने नहीं आना चाहता था। जिससे वो तरंग को भनक लगे बिना उसकी शक्ति सोख सके और एक दिन तरंग अपनेआप इतना कमज़ोर हो जाए कि वो ख़ुद अपने शरीर से नियंत्रण खो दे। जिससे वो तरंग के शरीर पर आसानी से कब्ज़ा पा सके। लेकिन शायद संयोग से उनकी नियति को ये मंजूर नहीं था। ना चाहते हुए भी तरंग पूर्वा को उस रूप में देख पाया। जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी।" चंद्र ने गंभीरता से जवाब दिया।
उसका जवाब पाते ही उम्मीद भरी नजरों से देखते हुए, "और जब उसने अपने भाई की आत्मा से संपर्क किया तो वो सिर्फ़ उसे सुन पा रहा था तब भी वो उसे देख नहीं पाया, ऐसा क्यूं?" मैंने फिर चंद्र से सवाल किया।
"हो सकता है कि जिस तरह तरंग का भाई उससे जुड़ा होने की वजह से तरंग की ताक़त उसमें जा रही थी उसी तरह तरंग के भाई की भी कुछ अद्भुत क्षमताएं तरंग में आ गई हो। वो ख़ुद उसके भाई को नहीं देख पा रहा था क्योंकि वो उससे शक्तिशाली था। मगर वो पूर्वा को देख पाया क्यूंकि पूर्वा का ऐसा कोई मक़सद नहीं था।" मेरे सवाल पर गहराई से सोचते हुए, "पूर्वा ना तो किसको कोई नुकसान पहुंचाना चाहती थी और नाहिं उसे खुदको छुपाने की ज़रूरत महसूस हुई थी। वो तो बस नेक दिल से अपनी बेहन को वापस लाना चाहती थी। और उसकी इसी नेक दिली के कारण उनकी सभी की नियति ने तरंग और पूर्वा को मिलाया ताकि वो दोनों एक-दूसरे का साथ दे पाए। ठिक इसी तरह जब तरंग ने अपनी बेहन के लिए उसके रूहानी भाई से बात करनी चाही तो वो चुप नहीं रह पाया। लेकिन शायद वो तब भी तरंग के सामने नहीं आना चाहता था। वो सिर्फ़ उस दिन तरंग के सामने आया जब तरंग ख़ुद पारलौकिक दुनियां में गया।" चंद्र ने कहानी के हर पहलू पर गौर करते हुए धीमे से कहा और मेरी तरफ गहरी नजरों से देखा।
अपना खाना ख़त्म करते ही मैंने अपनी प्लेट और बाकी बर्तन समेट लिए। "शायद तुम सही हो। इन पारलौकिक गतिविधियों को समझ पाना इतना आसान नहीं। और तरंग की ये कहानी भी काफ़ी उलझी हुई और पैचीदा है।" इसी दौरान चंद्र की बाते सुनने ही मैंने धीरे से कहा।
"बिल्कुल। हम पारलौकिक गतिविधियों के पीछे छुपे कारण का अनुमान लगा सकते है। लेकिन इन घटनाओं का सटीक स्पष्टीकरण कर पाना ना मुमकिन है।" चंद्र ने फिर गहरी सोच के साथ कहा।
उसके बाद मेरा किचन का काम ख़त्म होते ही मैं हॉल में लौट आई। और चंद्र भी मेरे साथ हॉल तक चला आया।
"अपने स्वार्थ और लालच में कोई इतना भी अंधा हो सकता है कि वो अपने हक़ के लिए लड़ने और गुनाह करने के बिच का फ़र्क ही भूल जाए!" तरंग और उसके भाई के बारे में सोचते हुए मेरे मुंह से निकल गया।
मेरी बात सुनते ही अचानक चंद्र के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई, "हो सकता है। कोई था जो इससे कई ज्यादा स्वार्थी, क्रूर और ज़ालिम था। जिसने ना सिर्फ़ अपने परिवार बल्कि अपनी प्रजा तक को नहीं बक्शा।" और उसने गंभीरता से नीची आवाज़ में कहा।
"वो कौन था, चंद्र?" अधीर होकर मैंने धीमे स्वर में दोहराया।
मेरा सवाल सुनते ही चंद्र की तेज़ नज़रे मेरी ओर मुड़ गई। "राणा उद्धम सिंह।" और उसने स्थिर आवाज़ में रहस्यमय ढंग से कहा।
"उसने क्या किया था?!" चंद्र के हर जवाब के साथ मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी और सवाल बन कर मेरे होठों से उभर रही थी।
"ये एक लंबी कहानी है।" अचानक मेरी तरफ़ देखते ही, "हम इस कहानी की शुरूआत कल से करेंगे।" चंद्र ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा।
चंद्र का जवाब सुनने के बाद मैं उससे और कुछ नहीं कहे पाई। मगर अगली कहानी को लेकर मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी। लेकिन इसके बावजूद मैंने चंद्र की पर कोई एतराज़ नहीं जताया और उसकी बात मान ली।
मैं अगली कहानी को लेकर मेरे मन काफ़ी उम्मीदें थी। पर फिर भी मैं तरंग और पूर्वा की कहानी को लेकर सोचना बंध नहीं कर पा रही थी। उनके एस्ट्रल प्रोजेक्शन करने की काबिलियत बार-बार मेरे मन में चहलपहल उठा रही थी।
कल रात मेरे साथ जो खौफनाक हादसा घटा उसके बाद मेरी ऊपर जाकर सोने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए अपने प्रोजेक्ट के काम के बहाने मैं देर तक यहीं हॉल में बैठी रही।
चंद्र के साथ बाते करते हुए कुछ देर काम करने के बाद मैं वहीं सोफ़ा पर लेट गई। कल रात से लेकर आज पुरे दिन जो हुआ उसके बाद मेरा शरीर पूरी तरह थक कर चूर हो चुका था। मगर मेरे दिलो-दिमाग थे जो लगातार भागे जा रहे थे।
मैं सोफ़ा पर सीधे लेटे हुए थी। मेरा दाया हाथ अपने पेट पर तो दूसरा सर पर रखा हुआ था। थकान के मारे मेरा शरीर अब बिल्कुल निष्कीय हो गया था। मगर मेरे मन में अभी भी एस्ट्रल प्रोजेक्शन के ख्याल दौड़ रहे थे।
क्या एस्ट्रल प्रोजेक्शन जैसा अद्भुत हुनर सीख कर किया जा सकता है?! क्या मैं ये नामुमकिन सा काम कर पाऊंगी? अगर मैं इस हुनर को सीख गई तो हो सकता है कि एक बार फ़िर मैं अपने आई-बाबा को देख पाऊं। अपने परिवार से मिल पाऊं। उनसे माफ़ी मांग पाऊं। इसी के साथ... मैं चंद्र की उस दुनियां को जान पाऊं, जिसने आज तक चंद्र को कैद कर रखा है। और अपने इन्हीं खयालों के बीच मैं कब नींद में खो गई पता नहीं।
मुझे सोए हुए बस कुछ ही मिनिट बीते थे। तब अचानक मेरी आंखे फिर खुल गई। और अपनी आंखें खुलती ही मैंने देखा कि मेरी आंखों के सामने हल्की नीली रोशनी फैली हुई थी। मगर जब मैंने आसपास नज़रे घुमाई तो मैं दंग रह गई।
जैसे ही मैंने चारों ओर नज़रे घुमाई मैंने ख़ुद को किसी अंजान से लंबे शाही महल के गलियारे में पाया, जो काफ़ी खूबसूरत और शानदार था। मैंने देखा कि मेरे पैरों में राजकुमारियों जैसे खूबसूरत सैंडल थे और मैंने पीले रंग की शानदार पोशाक पहन रखी थी।
उस विशाल गलियारे में शाही पोशाक पहने मैं बिल्कुल अकेली खड़ी थी और हैरानी से यहां-वहां देख रही थी। वहां आसपास हर कहीं हल्की नीली रोशनी और धुंध छाई थी। साथ ही मुझे काफ़ी ठंड लग रही थी, मानो जैसे मैं किसी बड़े आकार के रेफ्रिजरेटर में खड़ी थी। चारों तरफ काफ़ी सन्नाटा पसरा था और इस बीच मुझे अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कने सुनाई दे रही थी।
मैं उस आलिशान मगर सुनसान गलियारे में अकेली खड़ी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। और इसी कशमकश में मैंने अपने कपकपाते पैरों को मंद गति से सरकाते हुए आगे बढ़ने का फैसला किया। मुश्किल से उठते अपने कदमों को आगे बढ़ाते समय मैंने अपने सामने एक छोटी बच्ची को देखा, जो अचानक गलियारे के दाई ओर बने कई सारे दरवाजों में से एक दरवाज़े से निकल कर बाहर आई ।
लगभग 4-5 साल की उस छोटी सी बच्ची ने खूबसूरत सा पीला फ्रॉक और सर पर छोटा सा सुंदर ताज पहना हुआ था। त्वचा का गोरा रंग, दो बड़ी आंखे, छोटे से नाजुक गुलाबी होठ और लंबे, हल्के भुखरे बाल देखने में काफ़ी प्यारे लग रहे थे। मेरी ओर मुड़ते ही उसने प्यारी सी मुस्कान के साथ मुझे देखा और तुरंत पलटकर उसी दरवाज़े से अंदर भाग गई, जहां से वो आई थी।
उसे अंदर भागते देख ये सोचकर मैं भी उसके पीछे दौड़ पड़ी कि 'शायद वहां कोई हो जो यहां से निकलने में मेरी मदद करें।'
लेकिन उस दरवाज़े से अंदर जाने पर भी मुझे कोई नहीं दिखा। वो जगह भी गलियारे की तरह बिल्कुल वीरान पड़ी थी। तब निराश होकर जैसे ही मैंने लौटना चाहा किसी की टिणी सी आवाज़ ने मुझे रोक लिया।
"आप इतनी जल्दी जा रहे हो?!" पलटकर देखते ही वो छोटी सी बच्ची मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी।
तब अगले ही पल, "हां, मुझे जल्दी जाना है।" उसके पास जाकर घुटनों के बल बैठते ही, "वैसे आपका नाम क्या है?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।
"हमारा नाम नैना है। और आपका क्या नाम है?" मेरे सवाल के जवाब में उस प्यारी सी बच्ची ने कहा।
"मेरा नाम पलक है।" मैंने भी अपना नाम बताया।
"क्या आप फिर मुझसे मिलने आएंगी, पलक?" उस प्यारी सी बच्ची ने मेरी आंखों में रहस्यमय ढंग से देखते हुए पूछा।
वो बच्ची दिखने में बिल्कुल आम बच्चों जैसी थी। मगर उसकी असामान्य लय में बोली गई बातें और उसके देखने का ढंग मेरे दिल में असहेज भाव जगा रहा था। मगर उसकी भोलीभाली सूरत देखकर मैं उसे चाहते हुए भी मना नहीं कर पाई। और मैंने सर हिलाकर हामी भर दी।
क्रमश:
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जैसा कि आप देख पा रहे होंगे कि ये चैप्टर पिछले सभी चैप्टर से लंबा और कई रहस्यों समाए हुआ है। इसी तरह आगे आने वाले सभी चैप्टर्स और भी रहस्यमय, अजीबोगरीब और डरावने होने वाले है।
* क्या है पलक के साथ घट रही इन विचित्र घटनाओं के पीछे का राज़?
* क्या चंद्र कभी पलक की इस मुश्किली को जान पाएगा?
* क्या पलक और आर्या अपने ही बदलते हुए अंदाज़ का कारण समझ पाएंगे?
(देखते मेरे प्यारे दोस्तों में से कौन कौन इन सवालों का अंदाज़ा लगा पता है? ☺️)
आने वाला अगला भाग और भी डरावना और दिलचस्प होने वाला है। अगले अपडेट के लिए हमसे जुड़ें रहे और हमें अपने बहुमूल्य अभिप्राय ज़रूर दे। साथ ही अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो इस कहानी पर वोट, कमेंट कर मुझे प्रोत्साहन भी ज़रूर दे।
🙂🙏🏻💖
दिल थाम कर रखिए क्योंकि अगला सनसनीखेज भाग जल्द ही प्रकशित होगा। ✍🏻
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