Chapter 19 - Chandra (part 1)
हैलो दोस्तो,
एक बार फ़िर मैं आपकी ओथर बी. तळेकर लौट आई हूँ असंभव के एक बिल्कुल नये भाग के साथ ।
उम्मीद है, आपको इसे पढ़ने में मज़ा आए । पर इसे पढ़ने के बाद अपने अनुभव और कीमती वोट देना ना भुले । आपके अनुभव मुझे हमेशा और ज़्यादा अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करते हैं । और करते रहेंगे ।
बिंदास होकर अपने फीडबैक और प्रतिक्रिऐ मेरे साथ इस कमेंट बॉक्स में ज़रूर शेयर करे ।
और आप अपने पर्सनल 'असंभव मोमेंटम ' भी मेरे साथ हेसटेग #MyAsmbhavMomemt के साथ शेयर कर सकते है ।
नोट :- 'असंभव मोमेंटम' क्या है ?
कई बार अपनी ज़िंदगी में हमें कुछ ऐसे अनुभव होते है, जो हमें उलझा देते है । डरा देते है । और सोचने पर मजबूर कर देते है । लेकिन हम उन अनुभवों को किसी से नहीं बांटना नहीं चाहता । 'वो हम पर हंसे या हमारा मज़ाक उड़ाएगे ।' यही सोचकर हम उस बात अपने मन में दबाकर घुटते रहते है या उसे भूलना ही बेहतर समझते है । तो मैं आपको बता दूं कि, 'ऐसा मेरे साथ भी बहोत बार हो चुका है। और मेरी ये कहानियां कहीं न कहीं मेरे उन्हीं अजीबोगरीब अनुभवों की देन है ।' इसलिए मैं आपकी बात अच्छे से समझ पाऊंगी । तो आप बेफिक्र होकर अपने उन अनुभवों को यहां मेरे साथ बांट सकते हो । आपको बस अपने अनुभवों को हेसटेग #MyAsmbhavMomemt के साथ शेयर करना है ।
मुझे आपके अनुभवों का इंतजार रहेगा । तो चलिए इसी के साथ हमारी कहानी को आगे बढ़ाते हैं ।
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शनिवार सुबह 2:30 बजे ।
देखते-ही-देखते पलक के साथ समय बिताते हुए एक और दिन गुज़र गया । कहानी सुनने के बाद मेरे कहने पर पलक अपने कमरे में जाकर सो चुकी थी । पर पहले की तरह मुझे लेकर अब उसके मन में कोई खौफ या डर नहीं बचा था । और उसके मन की बात सोते समय भी उसके मासूम से चेहरे पर साफ़ झलक रही थी । पलक के सोते ही मैं हमेशा की तरह छत पर चला आया । मगर उस वक़्त मुझे देखकर पलक के होठों पर आई वो प्यारी सी मुस्कान भरा चेहरा अब भी मेरी आंखों में बसा था ।
मेरी मौत के बाद मेरे पास खुश रहने की कोई वजह, कोई मकसद बाकी नहीं था । लेकिन पलक के यहां आने के बाद मैं धीरे-धीरे उससे जुड़ता चला गया । उसे खुश देखकर मुझे एक अजब से सुकून का एहसास होता । इसी दौरान कब पलक के होठों की मुस्कुराहट मेरी खुशी बन गई, मैं समझ ही नहीं पाया । मगर अपनी खुशी के ख़ातिर मैं पलक की ज़िंदगी तबाह नहीं कर सकता था ।
पलक पेहले ही खतरे के साये तले जी रही थी और ऐसे में उसका मुझ जैसी आत्मा से लगाव होना ठीक नहीं था । पलक एक ज़िंदा लड़की थी और उसे उसी के जैसे अच्छे लोगों के साथ की ज़रूरत थी, ना के मेरी ।
मैं पलक को लेकर अपनी इन्हीं सोच में डूबा था । तब अचानक मैंने मौसम में आए बदलावों को महसूस किया । एकाएक माहौल तंग सा होने लगा । साफ-सुथरे और शांत मौसम के बीच अचानक आकाश में काले-घने बादल घिर आए और हल्की कड़कती बिजली के साथ झीरमीर बारीश शुरू हो गई ।
लेकिन मैं इस बात को लेकर आश्चर्य में था कि, 'पलक कई दिनों से यहां रेह रही थी । पर फ़िर भी उसने कभी वैसा कुछ महसूस नहीं किया, जैसा के मैंने किया था ।' क्या इतने सालों में सच में ये महल अब सुरक्षित हो गया था ? क्या सच में अब ये जगह श्राप मुक्त हो गई थी ? या फ़िर ये शांति किसी तूफान के पेहले का सन्नाटा था ?
और तब इस महल के अतीत के बारे में सोचते ही मुझे पलक की बहोत ज़्यादा चिंता होने लगी । मुझे अचानक अजीब सी घबराहट का एहसास हुआ । इसी के साथ हवाएं भी तेज़ हो गई । और एकाएक तेज़ कड़कती बिजली के साथ तूफानी बारीश होने लगी । जिसके बाद मैं पलक के पास जाने से ख़ुद को नहीं रोक पाया ।
अगले ही पल मैं कमरे की दिवार से होकर पलक के कमरे में जा पहुंचा और उसके बिस्तर के सामने के मंजर ने मेरे होश उड़ा दिये ।
तेज़ हवा के थपेड़ों के साथ ज़ोरदार बारिश शुरू हो गई थी । और इसी भयानक तूफानी मौसम के बीच तेज़ कड़कती बिजली के जलती-बूझती रोशनी उस नज़ारे को और भी ज़्यादा दहशतगर्द बना रहा था ।
मैं पलक के सिरहाने खड़ा था और मेरी खौफजदा नज़रे उसी परछाई की हरकतों पर गढ़ी थी । उस खौफनाक साये को पलक के बिस्तर के ईर्द-गिर्द मंडराते देखकर मैं बहोत ही ज़्यादा डर गया ।
वही खौफनाक साया । उसके सफेद बेरंग से फीके चेहरे पर वही गहरी हरी आंखे और बड़ी काली फैली हुई आंखों की पुतलियां । जो आज भी उसी सुलगते हुए नफरत की चिंगारी से भरी थी । वो साया बिल्कुल मेरे सामने पलक के बिस्तर के दूसरी तरफ़ मंडरा रहा था ।
मेरे वहां पहुंचते ही उस मनहूस साये ने अपना सर उठाकर हल्की गुर्राहट के साथ मेरी ओर देखा । उसकी वो गुस्सैल तेज़ाबी नज़रे मेरी ओर मुड़ गई । लेकिन इससे पहले कि, वो शैतान अपनी चाले चल पाती मैं सावधान हो गया ।
उसे देखते ही अपना दाया हाथ आगे कर मैंने पलक को अपनी शक्तियों के कवच के बीच सुरक्षित कर दिया और ख़ुद उसकी ढाल बनकर आगे चला आया ।
पलक मेरे पीछे बिस्तर पर अपनी गहरी नींद में खोई थी । और मेरी शक्तियों के चमकीले नीले कवच के बीच कुछ समय के लिए वो बिल्कुल सुरक्षित थी ।
उस शैतानी साये के सामने आते ही, "दूर रहो यहां से ।" गुस्से में मैंने अपना वही खौफनाक रूप धारण कर लिया, जिसने हमेशा इंसानों पर खौफ बनाए रखा था ।
इससे पहले कि, उस अपशकुनी साये की नज़रे फ़िर एक बार पलक पर पड़ती मैं उनके बीच चला आया । मेरे साथ जो हुआ वो मैं पलक के साथ हरगिज़ नहीं होने दूंगा । मैं पलक को नफ़रत की आग में झुलस रही उस मनहूस आत्मा की बली नहीं चढ़ने दूंगा ।
अपनी भयानक आंखों से मुझे घूरते हुए, "तो तुम इसकी रक्षा करोगे !?" उसके शैतानी चेहरे पर ज़ेहरीली मुस्कान उभर आई ।
उस शैतानी साये को आगाह करते ही, "हां, जैसे कई सालों से हमेशा सबको बचाता आया हूँ ।" मैंने अकड़ के साथ सर उठा लिया ।
"ये तुम्हारा भ्रम है, लड़के । तुम्हें अभी हमारी ताकतों का एहसास नहीं । उन लोगों का भाग्य अच्छा था ।" मेरी बात को अपनी बेहूदा हंसी में उड़ाते हुए, "वो तो कभी हमारा शिकार बने ही नहीं । तुमने बस उन्हें हमारी नज़रो में आने से पहले ही भगा दिया था । लेकिन.. ये लड़की... इसे तो मैं अच्छी तरह देख भी चुकी हूं और इसे अपना अगला शिकार बना भी चुकी हूं ।" उस मनहूस आत्मा ने घमंड के साथ अपने शैतानी इरादों को उजागर किया, जिसे जानकर मैं मन ही मन परेशान हो गया ।
मगर मैंने ये तैय कर लिया था कि, चाहे जो भी हो जाए मैं पलक के साथ वो सब कुछ कभी नहीं होने दूंगा, जो मैं भुगत चुका था । हाँ ये वही भयानक साया था, जिसने मेरी जान ली थी । मुझे अपने परिवार, अपने दोस्तों से हमेशा के लिए दूर कर दिया था ।
"इस बार नहीं । तुम पलक के साथ ऐसा कुछ नहीं कर पाओगी, जैसा तुमने मेरे साथ किया था ।" अपनी तड़प और गुस्से के बीच कड़कती बिजल्यों के साथ मेरी आवाज़ गरज उठी ।
मेरी बात सुनते ही वो साया अचानक मेरी ओर झपट पड़ा । लेकिन मैं अपनी जगह पर पत्थर की अड़ा रहा । उस वक़्त मेरे अंदर गुस्सा, तड़प, कशमकश और डर एक साथ चल रहे थे । और मेरी बिल्कुल नज़दीक आते ही उस साये ने अपनी खौफनाक नज़रों से मेरी आंखों में गहराई से झांक कर देखा ।
और तब अचानक पीछे हटते ही, "तुम्हें इस लड़की से.. कुछ ज़्यादा ही लगाव हो गया है । लेकिन फिर भी इसे बचा नहीं पाओगे चंद्र.. । ना तुम.. मुझसे बच पाए थे और नाहिं ये.. बच पाएगी । हमसे कोई नहीं बचागे ।" उस मनहूस आत्मा ने गुर्राते हुए अपनी कंटीली हंसी के साथ घोषणा की ।
"मैं भी देखता हूँ तुम मुझे कैसे रोकती हूं । तुम्हारे और इस लड़की के बीच मैं खड़ा हूं । मेरे रेहते तुम किसी भी बेकसूर इंसान को नहीं मार पाओगी ।" मैं उस काली परछाईं के सामने मज़बूती से बना रहा । और मेरी नज़रें बहोत सतर्कता से उसी पर जमी थी ।
"हंमम.. देखेंगे कि, तुम.. क्या कर सकते हो । ये लड़की काफ़ी खुशकिस्मत है ।" दांत पीसते हुए पलक की तरफ़ देखकर, "फिलहाल के लिए हम इसे छोड़ते हैं । लेकिन हम वादा करते हैं, 'हम इसे ख़त्म करने जल्दी ही वापस लौटेंगे ।' और तब हम इसका पीछा तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक कि ये मर नहीं जाती ।" उस आत्मा ने मुझे चुनौती थी । और इसी के साथ अपने भद्दे से भयानक चेहरे पर ज़हरीली मुस्कान के साथ वो परछाईं अचानक मेरी आंखों के सामने से अदृश्य हो गई ।
उसके जाते ही मैं वापस अपने साधारण रूप में लौट आया और मैंने पलटकर पलक की ओर देखा । मेरे बनाए कवच के साये में वो अब भी बिल्कुल महफूज थी । पलक थकान के कारण अपने बिस्तर पर बड़े चैन से सोयी हुई थी । और उसके मासूम से चेहरे पर कोई डर या बेचैनी नहीं थी ।
पलक यहां हुई डरावनी घटनाओं से बिल्कुल बेखबर थी । हम दोनों के बीच हुई बातचीत उसके कानों नहीं पहुंच पाई थी, जो उसके लिए अच्छा ही था । मैं नहीं चाहता था कि, वो उस खौफनाक डर को फ़िर से एक बार महसूस करे । मैं उसे हर किस्म की परेशानी से सुरक्षित रखना था ।
इस वाक्या के बाद मुझे पलक की बहोत फ़िक्र होने लगी । उसके बाद मैं पलक से दूर नहीं जा पाया । पूरी रात मैं पलक की चिंता में उस पर निगरानी रखते हुए वहीं उसके कमरे में बैठा रहा । वो बिल्कुल मेरी आंखों के सामने अपने बिस्तर पर सो रही थी । मैं उसके सामने कुर्सी पर बैठा था और मेरी नज़रें लगातार उसी पर बिछी रही ।
सुबह 7:00 बजे ।
अगली सुबह तक मैं वहीं पलक के पास बैठा रहा । तब अचानक मैंने पलक को हिलते हुए देखा । उसकी नींद अच्छे से पूरी हो चुकी थी । और वो नींद से जागने ही वाली थी । मगर इससे पहले कि, वो अपनी आंखें खोलकर मुझे देख पाती मैं वहां से ग़ायब हो गया, जिससे पलक को मुझ पर किसी किस्म का कोई शक ना हो और वो सब कुछ साधारण महसूस करे ।
कुछ घंटों बाद पलक के तैयार होते ही उसके ऑफिस जाने से पहले मैं उसे मिला । उससे रोज़ की तरह बातें और उसके बाद हमेशा की वो अपने होठों पर प्यारी सी मुस्कान लिए अपनी साथ घर से निकल गई ।
मैं जानता था कि, महल से बाहर वो सुरक्षित थी । वो मनहूस साया महल के बाहर पलक का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था । लेकिन अगर पलक के वापस लौटने से उसने कुछ कर दिया तो मुझे क्या करना होगा ? मैं अपने इन्हीं सवालों में उलझा था ।
शाम 6:30 बजे ।
आज पलक को घर लौटने में देर हो गई थी । और एक तरह से देखा जाए तो ज़्यादा से ज़्यादा समय महल से बाहर रहना ही उसके लिए सुरक्षित था । लेकिन इंसानी ज़िंदगी के ख़तरों से वाकिफ़ होने के नाते मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी थी । पर कुछ ही मिनटों के बाद मेरा इंतजार ख़त्म हुआ और पलक घर लौट आई ।
"पलक..?" उसके आती ही मैंने उसे आवाज़ दी और उसके पास जा पहुंचा ।
"चंद्र.. माफ़ करना मुझे आज घर लौटने में देर हो गई । असल में, आज हमारे मैगज़ीन की पेहली कॉपी प्रिंट होकर आए है । और अगली थीम के बारे में तुमने जो आईडिया था वो मैंने ऑफिस में सबको बताया, जो हमेशा की तरह सबको बहोत पसंद आया ।" पलक ने आते ही मेरे पूछे बग़ैर मेरे सारे सवालों के जवाब दे दिए, जिससे मुझे अच्छा लगा ।
"ये तो अच्छी बात है । मुझे तुम पर भरोसा है । इस बार भी तुम अपना प्रोजैक्ट बहोत अच्छे से करोगी ।" उसकी तरफ देखते ही मैंने कहा और उससे अकेले में थोड़ा समय देते हुए मैं उससे दूर हो गया ।
"चंद्र ?" मगर इससे पहले कि मैं जा पाता पलक ने मुझे रोक लिया । "थैंक यू । मैंने जो भी किया है या कर रही हूं वो सब तुम्हारी वजह से है ।" मेरे पलटते ही पलक ने जज़्बाती होकर कहा । तब उसकी बातें सुनते ही बिना कुछ कहे हल्की मुस्कान के साथ सर झुकाते ही मैं वहां से चला गया ।
शाम 7:15 बजे ।
आज पेहली बार पलक से दूर जाने के बाद इतने कम समय में मैं उसके पास वापस लौट आया था । क्योंकि मुझे किसी भी कीमत पर पलक की हिफाजत करनी थी । मगर मुझे पलक से किया अपना वादा याद था, 'मैं जब भी उसके आसपास रहूं, तो अपने ज़ाहिर रूप में रहूं ।' इसलिए मैं उसी तरह उसके साथ बना रहा ।
उस वक़्त मैं पलक के साथ किचन में था । पलक अपने लिए खाना बना रही थी । और मैं उसके आसपास घूमते हुए उसे सारे काम करते देख रहा था ।
हल्के बिखरे हुए बाल, चेहर पर थोड़ा सा पसीना और कपड़ों पर थोड़ा-बहोत आटा बिखरे हुए पलक काफ़ी प्यारी लग रही थी । सब्जियाँ, आटा और मसालों के साथ खाना बनाने की उलझन के साथ जूझते हुए भी उसके उजले से चेहरे पर प्यारी मुस्कान बिखरी हुई थी । इसी के साथ मुझसे बातें करते हुए वो तेज़ी से अपना काम कर रही थी ।
तब अचानक मैंने हवा में एक अजीब सी घुटन महसूस की । और तब अगले ही अपनी शक्तियों के ज़रिए मैंने उस मनहूस साया को पलक के आसपास मंडराते देख लिया । मैं पलक से कुछ दूरी पर उसके सामने खड़ा था । और वो अपना खाना बनाने में लगी थी कि तभी अचानक एक लंबे काले नाखूनों से भरा डरावना सा हाथ पलक के पीछे से उसकी ओर बढ़ने लगा ।
उस काले साये के राक्षसी हाथ को पलक की ओर बढ़ते देख मैं घबरा गया । पर इससे पहले कि वो गंदा हाथ पलक को छू पाता मैं पलक के पास जा पहुंचा और पलक को बातों उलझाए रखते हुए मैंने अपना एक हाथ पीछे की तरफ रख कर उस हाथ को वहीं जकड़ लिया । और अगले ही पल ज़ोर से झटकते ही मैंने उस पर अपनी शक्तियां चलाते हूए दूर फेंक दिया । जिससे झटका खाकर वो साया दिवार से आरपार होकर बाहर चला गया ।
पर वो इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थी । मेरे हाथों अपनी पहली हार के बाद वो आत्मा गुस्से में भड़क उठी और वापस अंदर चली आई । और आते ही उसने गुस्से में वहां रखे बर्तनों गिरा दिया । लेकिन उन बर्तनों के गिरने से पहले ही पलक की नज़रें बचाकर मैंने तेज़ी से वहां पहुंचकर उन बर्तनों गिरने से रोक लिया और उन्हें वापस उनकी जगह रख दिया । पर इसी दौरान एक बर्तन धड़ाम से नीचे गिर पड़ा । और उसकी आवाज़ सुनते ही पलक की नज़रें उस दिशा में हैरानी से उठ गई ।
पर तब झट से वहां पहुंचते, "माफ़ करना, मैं बस तुम्हारी हेल्प करना चाहता था ।" मैंने सच्चाई को बनावटी मुस्कान के पीछे छुपा लिया ।
"कोई बात नहीं ।" आसानी से मुझ पर भरोसा करते हुए, "मेरा काम लगभग हो ही गया है । हम यहां से चलते हैं ।" पलक के काम के बीच हल्की सी मुस्कान के साथ कहा । और उसके बाद पलक खाना लेकर कित्चन से बाहर आ गई ।
डायनिंग टेबल पर खाना लग चुका था और आज पहली बार उस काली परछाईं के डर से मैं इस पूरे समय पलक के साथ ही बना रहा ।
पलक के हाथों बने खाने ही महक सच में लाजवाब थी । अगर आज मैं खाना खा पाता तो इस खुश्बू को सूंघते ही खाने पर टूट पड़ता । आईं के बाद पलक वो पहली लड़की थी जिसके हाथ का खाना मुझे पसंद आया था । लेकिन शायद मेरी किस्मत में ये खाना नहीं लिखा था ।
मेरे सामने खाने की प्लेट लेकर बैठते ही, "क्या तुम नहीं खाओगे ?!" पलक के भोलेपन में सवाल किया ।
"तुम्हें क्या लगता है, अगर मैं खा सकता तो अब तक बैठा रहता ?" जवाब में कहते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान उभर आयी ।
मेरी बात पर मायूस होकर सर झुकाते ही, "मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि, मैं खाऊं और बस ऐसे ही बैठे रहोगे तो ।" पलक ने धीमे से कहा ।
"आई'एम सोरी । तुम अपना खाना ख़त्म करो । मैं जाकर होल में तुम्हारा इंतजार करता हूं ।" इतना कहते ही मैं जाने के लिए मुड़ा ।
"नहीं, प्लीज मत जाओ ।" लेकिन फ़िर मुझे रोकते ही, "मेरी वजह तुम्हें जाना पड़े तो मुझे वो भी अच्छा नहीं लगेगा ।" पलक ने कहा ।
"तो अब तुम ही बताओ । क्या करूं मैं ?" वासप आते ही मैंने उलझी हुई मुस्कान के साथ सवाल किया । पर पलक बिल्कुल ख़ामोश बनी रही ।
"तु...तुम यहीं बैठकर हमारी मैगज़ीन पढ़ो ।" पलक ने धीमे से सर उठाकर मुझे देखते ही मुस्करा कर कहा ।
पलक के केहते ही मैं बिना किसी एतराज़ के उसके सामने बैठ गया । और पीछे होल में पड़ी उस मैगज़ीन पर अपनी नज़र डालकर चुटकी बजाते ही वो मैगज़ीन हवा में लहराती हुई मेरे हाथों में आ पहुंची । उसके बाद मैंने वहीं किया जैसा पलक ने कहा था ।
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कई बार आपको कहानी पसंद आती है । लेकिन जब कोई आपको किसी कहानी या नॉवेल के बारे में अपनी प्रतिक्रिया या फीडबैक देने को कहता है तो आप नहीं दे पाते । इसीलिए जब आपको कोई अपना फीडबैक पूछे तो इन चीजों को याद रखे और आसानी से अपना फीडबैक दे ।
1. नॉवेल में क्या पसंद आया ? (करेक्टर, कहानी, सीन या डिसक्रिपशन)
2. क्यों पसंद आया ? (संदेश, सिख या जज़्बात)
3. इस कहानी को पढ़कर कैसा लगा ? (आपके एहसास और जुड़ाव )
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