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Chapter 1 - Mouli. Monday, 26 - Oct - 2015

मेरी graduation कि पढ़ाई ख़त्म होते ही मुझे यहां एक अच्छी job मिल गयी थी । इसलिए हमने यहीं इसी शहर में रहनें का फैसला कर लिया । और मेरी खुशी के लिये मेरे दोस्तों ने समुद्र केे पास बनी colony में घर लिया था । एक तरह से मेरी life में कोई problem नहीं थी लेकिन फ़िर भी, मैं खुश नहीं था ।
हमेशा कि तरह आज भी मैं समुद्र के किनारे खड़ा था । शाम के वक्त इसी तरह समुद्र कि हलचल से भरी और हवा कि धून पर नाचती हुई इन लहरों को देखना मुझे बहुत पसंद था ।
मैं जब बहुत ही छोटा था तभी से मुझे समुद्र और उससे जूड़ी हर चीज़ से काफ़ी लगाव था । और आज मैं पूरे बाईस साल का हूं । मगर फिर भी मेरा ये लगाव ज़रा भी कम नहीं हुआ था ।
लेकिन अपने बचपन और उससे जूड़े लोगों कि याद आते ही मेरी तकलीफ़ खारा पानी बनकर पलकों से टपक पड़ती ।
तब अगले ही पल समुद्र के किनारे पड़ी एक छोटी - सी मछली को तड़पते देखकर मैं उस तरफ दौड़ पड़ा । उस मछली को जल्दी से अपने दोनों हाथों में लेकर में समुद्र के पानी में गया ।
मैने देखा के उस मछली के शरीर से खून निकल रहा था । इसलिये मैने पहले पानी डालकर उसके ज़ख्म को साफ़ किया और थोड़ी दूर जाकर उसे धीरे से पानी में छोड़ दिया ।
लेकिन ये सब करना मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं थी । क्योंकि मैं पहले भी कई बार ऐसा कर चूका था । और मुझे भी ऐसा कर के काफ़ी सुकून मिलता था । मेरा ये गुण शायद जन्म से ही मेरे खून में था ।
मेरी आईं ने मुझे बताया था के 'जब मैं क़रीब 6 - 7 साल का था तब हम सब केरल घुमने गए थे । उस दिन जब हम beach पर थे तब कुछ कुत्तों को भोंकते हुए सुनकर मैं उस तरफ गया । और जब मैने देखा के 'वो सारे कुत्ते किसी मछली के पीछे पड़े है' तब मैने बिना डरे उन कुत्तों को वहां पड़ी लकड़ी से मारकर दूर भगा दिया और उस मछली को हाथ में लेकर समुद्र कि तरफ दौड़ पड़ा । उस समय वो सभी कुत्ते मेरे पीछे पड़े थे । उनमें से एक कुत्ते ने मेरे पैर में काट लिया था और मेरे पाँव से लगातार खून बहता जा रहा था । लेकिन फिर भी मैने अपनी फ़िक्र किये बिना उस मछली को बचा लिया ।'
मगर मुझे ऐसा कुछ भी ठिक से याद नहीं था । अगर मुझे कुछ याद था तो वो थी मेरी आईं - बाबा कि यादें ।
लेकिन आज मैं उन सभी यादों से और उन सबसे दूर यहां इस समुद्र के किनारे कई लोगों के होते हुए भी बिल्कुल अकेला खड़ा था ।
शाम 7: 30 बजे ।
"मौलि..? मौलि, मेरे भाई तुम यहां हो और मैं कब से पागलों कि तरह तुम्हे ढूंढ रहा था ।" वर्ण ने मुझे देखते ही मेरे पास आकर कहा । हम तीन दोस्त थे और हम सब एक ही flat में साथ रहते थे । और वर्ण हममें से एक था ।
"I'm sorry.! मुझे माफ़ करना । यहां आकर वक्त का पता ही नहीं चला ।" मैने उलझी हुई मुस्कुराहट के साथ कहा ।
"वो सब छोड़ो और अब घर चलो । राहुल कबसे घर पर हमारा इन्तजार कर रहा है । TV में दिखाया जा रहा है के आज रात मुम्बई में काफ़ी ख़तरनाक तूफ़ान आने वाला है ।" "इसलिये अब चलो मेरे साथ ।" वर्ण ने परेशान होकर कहा और मुझे खिचकर अपने साथ ले गया ।

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