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1st chapter

* This story is a work of fiction
* I don't allow to publish any translation of the story.                                          
 

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सुबह से ही सामने वाले घर में काफी हलचल थी। उस घर के बालकोनी से वो कमरा दे खा जा सकता था। वो कमरा उस घर के एक लौते बेटे का था।

दो-चार लोग उस कमरे को खाली कर रहे थे और नीचे दो औरतें बात कर रही थी।


जब मैं यह बात अपनी मम्मी को बोली तब वह भी थोड़ा चौंक गयी। फिर पता चला कि उस घर की बहू आई है। लगभग बारह साल बाद आई थी वो और फिर मुझे पुरानी बातें याद आने लगी।

जब हम उस मुहल्ले में आए थे,तब वो नयी-नवेली दुल्हन ही थी, दिखने में भी काफी खूबसूरत थी, नयी-नवेली दुल्हन की आभा उसके चेहरे से झलकती थी।

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उन्हीं दिनों जब मैं एक बार पास के दुकान की तरफ जा रही थी तब वो एक बाल्टी पानी बाहर से घर में ला रही थी।

मुझे यह बात थोड़ी सी खटक रही थी कि नयी दुल्हन को तो ससुराल में कितना लाड़ प्यार मिलता है चाहे कुछ सालों बाद जो भी हो!

दरअसल उस समय हर घर में नल की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन हमारे घर में नल की व्यवस्था थी। एक बार वो हमारे घर से भी दो बाल्टी पानी ले गयी थी, फिर सुनने में आया कि इस बात के लिए उसकी सास ने उसे बहुत डांटा।
समय बीतता गया और फिर भगवान ने उन्हें तोहफे के रूप में एक बहुत ही प्यारा बेटा दिया। उसका अन्नप्राशन भी बहुत धूमधाम से मनाया गया था। ठंड का समय था इसलिए वो अपने बेटे को बालकोनी में नहलाया करती थी क्योंकि वहां धूप बहुत अच्छा आया करता था। वो बच्चा भी पानी के गमले में छपाछप खेलता हुआ बहुत अच्छा लगता था।

फिर पता नहीं क्या हुआ कि एक दिन वो अपने मायके चली गई और फिर नहीं लौटीं। मुहल्ले वालों का कहना था कि उसकी सास और ननद ने उसे बहुत सताया है और इसलिए वो अब नहीं आएगी।

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