चाँद की इक फाँक
जिंदगी, यूँ तो मुझे
बहुत कुछ दिया तूने
मगर कुछ कमी सी है,
जो ख़ुशियाँ नहीं थीं
अब तक मेरे पास
वो मुझे आज दे दो।
टिकते नहीं हैं पाँव
साहिल की
गीली रेत पर,
पंख फैलाने को
एक टुकड़ा ही सही
आसमान दे दो।
मचलता है मन
जब छूती है तन को
यह ठंडी मस्त पवन,
मेरी आँखों को
इन हवाओं सा लहराता
इक ख़्वाब दे दो।
जला रही है मुझको
कुछ अधूरी हसरतों
की अनबुझ प्यास,
होंठ तर करने को
ठंडे मीठे चाँद की
इक फाँक दे दो।
कर पाऊँ जिस से
खुल कर मैं
अपने दिल की बात,
ऐसा एक साथी
इक प्यारा दोस्त
एक हमराज़ दे दो।
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