खूबसूरत झूठ
ऐ दोस्त आज फिर एक ख़ूबसूरत झूठ दे दो,
आज फिर जीने का इक बहाना दे दो मुझको।
कह दो कि मीलों दूर हैं इक दूजे से मगर,
कोई फ़ासला नहीं है हम दोनों के दरम्यान।
कह दो कि अकेली नहीं हूँ अब मैं,
तुम मेरे आसपास हो साए की तरह।
कह दो कि ग़म ना करूँ गिरने का,
है मेरे पास तेरी बाँहों की पनाह।
इन आँखों को एक हसीन ख़्वाब दे दो ऐ दोस्त,
ज़िंदगी को इक ख़ूबसूरत वजह दे दो ऐ दोस्त।
कह दो कि मैं तुम्हारी रूह का इक हिस्सा हूँ,
जो टूटके बिछुड़ गया था सदियों पहले तुमसे।
कह दो कि वक़्त की तयशुदा सज़ा के बाद,
अब जाकर मिले हैं फिर से हम-तुम।
कह दो कि अब मिले हैं तो ना बिछुड़ेंगे कभी,
दो टुकड़े जुड़ के हो जाएँगे इकदूजे में गुम।
ऐ दोस्त आज फिर एक ख़ूबसूरत झूठ दे दो,
आज फिर जीने का इक बहाना दे दो मुझको।
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