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10 | मोर और कौआ

मोर और कौआ


नेताओं को बेवकूफ़ कह देना अपने आप में एक बड़ी बेवकूफी होगी। नेता मूर्ख नहीं होता। आप खुद सोचिये एक नेता अनर्गल बातें इस दम पर कह पाता है क्योंकि वह जानता है कि उसकी बकवास को सही समझने वाले ज़्यादा और ग़लत समझने वाले कम है।

अब एक प्रदेश के मंत्री थे तोलाराम जी। पाँच साल होने को थे और चुनाव सर पर। खूब सोचा कि जनता को कैसे बहलाया जाए क्योंकि प्रदेश का विकास तो ज्यों का त्यों ही पड़ा है।

बहुत सोचने के बाद फैसला किया कि एक भाषण दिया जाए। भाषण में कह दिया कि सुबह सुबह मोर का दिखना प्रदेश की प्रगति का संकेत है और अगर किसी सज्जन को मोर न दिखे तो वह फिर वोट भी न दें।

अब मोर का सुबह सुबह दिख जाना कोई असामान्य बात तो थी नहीं लेकिन फिर भी यह युक्ति काम कर गयी। जिसे जिसे मोर दिखता उसे लगता मंत्रीजी कोई बड़े धर्मात्मा है और अब तो प्रदेश की प्रगति निश्चित है।

विपक्ष दल यह देखकर घबरा गया की मंत्री का मंतर चल गया। उन्होंने सोचा और खूब सोचा। फिर अंत में फ़ैसला किया की एक समारोह में कहलवा दिया जाए की सुबह कौआ दिख जाना दुर्गति का संकेत है और अगर दिख जाए तो तोलाराम जी को वोट ना दें।

बस फिर क्या था जनता का ध्यान मोर से हट कर सुबह सुबह कौओं को देखने में खपने लगा। अब हर कहीं हर किसी को कौआ दिख जाता। जैसे ही दिखता वैसे ही वह क्रोध से तिलमिला उठता।

यह दृश्य देख तो तोलाराम जी की नींद उड़ गई। कुर्सी हाथ से जाती दिखी। आनन फानन में सरकारी फरमान निकाल दिया की सारे कौओं को गुलेल से मार दिया जाए।

पूरा तंत्र कौवे मारने में लग गया। विपक्ष भी कहाँ चुप बैठता। देखते ही देखते प्रदेश मे मोर की तस्करी बढ़ गयी। कुछ ही दिनों में प्रदेश में न मोर बचा न कौवा।

और फिर चुनाव एकदम सर पर आ गए। जनता सोच में पड़ गयी की प्रदेश की आख़िर प्रगति हुई या दुर्गति। अब तो न कहीं मोर दिखाई पड़ता है न ही कोई कौवा।

फिर अचानक से उन्हे पेड़ से लटकी कुछ किसानों की लाशें दिखाई दी।

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