सिन्दूरदान
सिन्दूरदान
बरसों मिलकर देखे थे सपने सभी ने,
कि आ ही गया वो वक्त कि पूरे होने थे सपने सभी के,
याद आ रहा था वो बीता प्यारा बचपन,
याद आ रहा था वो बचपन के लड़ाई - झगड़े,
याद आ रहा था वो डाँट - फटकार भी,
बस, कुछ ही देर में बदलेगी सारी चीजें और
हो जाएगा पराया वो घर जिसे अपना कहती थी,
और सँवारना पड़ेगा एक नए घर को,
वो दीवारे भी याद करेंगी उसे,
वो अलमारी भी याद करेगी उसे,
वो रसोईघर भी याद करेगा उसे,
ये कैसा वक्त आया है! कि,
सुन रहा था दिल एक ओर मंगलगीत,
तो दूसरा हिस्सा उदास था किसी अपने के दूर जाने से,
ये कैसा वक्त आया है! कि,
होने को थे पूरे सपने सभी के,
फिर भी लाल रंग में सजी- धजी,
उसकी आँखें भी नम हो रही थी,
कि ये संगम था आने वाली खुशियों का,
बढ़ती जिम्मेदारियों का और
बदलती हुई पहचान का,
कि ये वक्त था सिन्दूरदान का।
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