ऐ रात, ठहर जा तू जरा सा
ऐ रात, ठहर जा तू जरा सा
ऐ रात, ठहर जा तू जरा सा,
अभी उनसे मुलाकात अधूरी है,
ऐ रात, ठहर जा तू जरा सा,
अभी कुछ बात अधूरी है,
ऐ रात, तुझ पे छायी ये लालिमा,
बादलो की बाहों में छिपे,
उस चाँद का प्रतिबिंब है,
ऐ रात, मेरे नसीब में भी लिख तू ऐसी लालिमा,
ऐ रात, ठहर जा तू जरा सा,
क्योंकि अब तो उनके बिना नव-दिवस को भी नामंजूरी है।
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