Chapter 2
कल्पना मीनाक्षी को घर के अंदर आने के लिए कहती है तभी दरवाजे पर खड़ा वो आदमी आश्चर्य होकर कहता है," मीनाक्षी! तुम यहाँ! "
" पापा!.... आप आंटी को जानते है?" कल्पना पूछती है क्योंकि अपने पापा की बात सुनकर वो कुछ समझ नहीं पाती।
"पापा!!!.... ये तुम्हारी बेटी है!!!"- मीनाक्षी आश्चर्य होकर पूछती है उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने सालो बाद वो उस आदमी को अपने आँखों के सामने देख रही थी जिसे भविष्य में फिर कभी न देखने की चाह थी।
जब मीनाक्षी और कल्पना के पापा वास्तविकता को स्वीकार करने का प्रयास कर रहे होते है, तभी कल्पना की मां वहाँ आती है और उससे पूछती है, " कहाँ रह गयी थी बेटी? इतनी देर क्यो हो गई घर आने में और.... और चेहरा इतना उदास क्यो है? क्या हुआ है? "
ये सारे सवाल सुनकर कल्पना अपनी माँ को पकड़ कर जोर-जोर से रोने लगती है। "तुम रो क्यो रही हो? गिर गई थी क्या? या कहीं चोट लगी?" उसकी माँ ने पूछा।
( अब कल्पना कैसे बोले कि वो गिरी नहीं मगर ठोकर जरूर लगा है... चोट लगी है उसे मगर दिल पर...)
तभी मीनाक्षी बोली, " मैं बोलती हूँ आपको कि क्या हुआ है!" और वो सारा घटनाक्रम कल्पना के माँ -पापा को सुना देती हैं।
सबकुछ सुनने के बाद उसकी माँ कल्पना को चुप कराने की कोशिश करती है, " चुप हो जाओ बेटी अब कितना रोओगी... मैं बोली थी न वो अच्छा लड़का नही है!...."
कल्पना सिसकते हुए कहती है, " हाँ, मुझसे गलती हुई कि मैं विश्वास की उसपर... मगर मुझे नही मालुम था कि वो इतना गिरा हुआ लड़का है और प्यार का ढोंग करता है। "
कल्पना के पापा उस लड़के पर बहुत गुस्सा थे, " कहाँ रहता है वो लड़का? मुझे अभी बोलो मैं अभी जाकर उसकी खबर लेता हूँ, उसने मरी बेटी के साथ ऐसा करने की हिम्मत कैसे की!... ", कल्पना से पूछते हैं।
मगर कल्पना और रोने लगती है, और साथ में अपने पापा से कहती है, " नहीं पापा... आप प्लीज़ उसे कुछ मत करिएगा,... उसने मेरे साथ गलत किया मगर मैं नहीं देख सकती कि उसके साथ कुछ बुरा हो¡, उसका प्यार झूठा था मगर मेरा नहीं!
("इतिहास खुद को दोहराता है।" ऐसा सिर्फ सुनी ही थी मगर मीनाक्षी उस दिन देख भी रही थी! ) - मीनाक्षी उसके पापा से, " शांत हो जाइए आप... गुस्से में कुछ करने की जरूरत नहीं है । "
कल्पना अपनी माँ से रोते हुए कहती है ," अब मैं कैसे जिंदा रहूंगी माँ! मै सोच भी नहीं सकती थी कि...." (और फिर रोने लगती है)
उसकी माँ उसे चुप कराती है और पीने के लिए पानी देती है। उसकी माँ मीनाक्षी को अंदर बैठने के लिए बुलाती है।
( मीनाक्षी बाकी सभी के साथ अन्दर जाकर बैठती है, कल्पना की मां उसे चुप कराने की कोशिश करती है और उसके पापा अभी भी गुस्से में होते है।)
मीनाक्षी कल्पना का दर्द समझ रही थी इसलिए कल्पना के पास आकर बैठती है, उसके सिर पर हाथ फेर कर उसे संभालने की कोशिश करती है, " शांत हो जाओ बेटी खुद को मजबूत करो, जितना जल्दी इनसब को स्वीकार कर लोगी, जीवन में उतना ही जल्दी आगे बढोगी। "
" मगर आंटी उन सपनो का क्या जो उसने मुझे दिखाए थे और मैने देखे थे ? " सिसक कर कल्पना मीनाक्षी से प्रश्न करती है।
"मैं समझ सकती हूँ तुम्हारा दर्द।...... ऐसे घटिया लोगों की कमी नही है दुनिया में जो लड़कियों को सपने तो दिखाते है मगर उनका इरादा पूरा करने का नहीं होता!.... " मीनाक्षी ये बोलकर दो सेकेण्ड के लिए कल्पना के पापा के तरफ देखती है।
मीनाक्षी की ये बात सुनकर, अबतक जो इंसान गुस्से में था, उसके हाव - भाव कुछ यू बदल गए हो जैसे उसकी चोरी पकड़ ली गयी हो।
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